राम की लक्ष्मण के प्रति आसक्ति का कथन
अज्ञान जनित राग ही मनुष्य के दुःख व अशान्ति का कारण है। रामकथा के माध्यम से जैन कवियों ने इसको बहुत ही सुंदर ढंग से समझाने का प्रयास किया है। बडे़- बड़े महापुरुष भी इस राग (आसक्ति) से चिपके रहते हैं। जब यह राग समाप्त हो जाता है तो वे सुख व शान्ति प्राप्त कर लेते हैं। आसक्ति का त्याग ही सुख व शान्ति का मार्ग है। इससे पूर्व हमने लक्ष्मण के मन की आसक्ति का एक रूवरूप देखा। यहाँ रामकथा के नायक ‘राम’ के मन की आसक्ति का संक्षेप में कथन किया जा रहा है। अन्त में आसक्तिका त्याग कर राम ने निर्वाण पद को प्राप्त किया।
राम ने सहसा लक्ष्मण की मृत्यु का समाचार सुना तो वे लक्ष्मण के पास वहाँ आकर बैठ गये। कान्तिशूून्य मृत लक्ष्मण को उन्होंने देखा तो लक्ष्मण के प्रति अत्यन्त मोह होने के कारण लक्ष्मण की मृत्यु पर उन्हें विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने मन में सोचा शायद यह मुझसे नाराज है, इसीलिए उठकर खड़ा नहीं हुआ। तब राम ने उसका मुख चूमकर कहा, हे लक्ष्मण! क्या तुम मुझसे बात नहीं करोगे, बताओ आज इतने कठोर क्यों हो? लक्षणों से तो लगता है कि तुम मर गये। फिर उन्होंने उसका सारा शरीर देखा और उसे मृत जान उसी क्षण मूच्र्छित हो गये। मूच्र्छा दूर होने पर लक्ष्मण के कार्यों का स्मरण कर करुण विलाप करने लगे। लक्ष्मण प्राण छोड़ चुके थे परन्तु राम तब भी राग छोड़ने को तैयार नहीं थे।
तदनन्तर विभीषण व अन्य सामन्तों ने भी संसार की नश्वरता का कथन कर राम को समझाने का प्रयास किया और कुमार लक्ष्मण का दाह संस्कार करने हेतु कहा। लक्ष्मण के दाह संस्कार की बात सुनकर राम भड़ककर बोले- अपने स्वजनों के साथ तुम जलो, तुम्हारे माँ-बाप जलें, मेरा भाई तो चिरंजीवी है। लक्ष्मण को लेकर मैं वहाँ चला जाता हूँ जहाँ दुष्टों के वचन सुनने में नहीं आवें। यह कहकर राम लक्ष्मण को कन्धे पर लेकर वहाँ से चले गये। वहाँ जाकर स्नानगृह में प्रवेश कर लक्ष्मण को स्नान कराया, रत्नों के आभूषणों से अलंकृत किया और उसको भोजन कराने लगे। लक्ष्मण का शव ढोते-ढोते लक्ष्मण के राग में राम का आधा वर्ष बीत गया। अन्त में बोध को प्राप्त होने से अपने राग को दूर कर लक्ष्मण का दाह संस्कार किया। अन्त में संन्यास अंगीकार कर निर्वाण पद को प्राप्त हुए।
राम के समान ही प्रत्येक प्राणी अपनी आसक्ति से ही दुःखी व अशान्त है, तथा राम के समान ही प्रत्येक व्यक्ति अपनी आसक्ति का निवारण कर शान्ति को प्राप्त कर सकता है। जैन रामकथा के पीछे रामकथाकारों का प्रमुख उद्देश्य संसार के प्रत्येक प्राणी को सुख प्रदान करना ही रहा है।
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