क्रमशः ज्ञानी के विषय में कथन
पुनः आगे के चार दोहों में ज्ञानी अर्थात् मुनि की विशेषता बताते हुए आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि ज्ञानी आन्तरिक व बाहरी परिग्रह से भिन्न आत्म स्वभाव को जान लेता है तथा काम भोगों से भिन्न आत्म स्वभाव को जान लेता है, अतः वह अंतरंग एवं बाहरी परिग्रह के ऊपर द्वेष और राग नहीं करता और ना ही काम भोग विषयक पदार्थों के ऊपर राग द्वेष करता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे के दो दोहे - दोहे का अर्थ सरल होने के कारण विश्लेषण नहीं किया जा रहा है।
49. गंथहँ उप्परि परम-मुणि देसु वि करइ ण राउ।
गंथहँ जेण वियाणियउ भिण्णउ अप्प- सहाउ।।
अर्थ -जिसके द्वारा आन्तरिक व बाहरी परिग्रह से भिन्न आत्म स्वभाव को जान लिया गया है, (वह) श्रेष्ठ मुनि अंतरंग एवं बाहरी परिग्रह के ऊपर द्वेष और राग नहीं करता।
50. विसयहँ उप्परि परम- मुणि देसु वि करइ ण राउ।
विषयहँ जेण वियाणियउ भिण्णउ अप्प- सहाउ।।
अर्थ - जिसके द्वारा काम भोगों से भिन्न आत्म स्वभाव को जान लिया गया है, (वह) श्रेष्ठ मुनि काम भोग विषयक पदार्थों के ऊपर राग और द्वेष नहीं करता।
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