राग द्वेष से रहित हुए व्यक्ति की स्थिति
यहाँ आचार्य ब्याज स्तुति अलंकार के माध्यम से कथन को प्रभावी बनाने के लिए दोष में भी गुण की स्थापना करते हुए कह रहे हैं कि राग द्वेष से रहित हुआ व्यक्ति अपने कर्मबंध को नष्ट कर देता है और अपने प्रति जगत को कठोर बना देता है। इसका दूसरा अर्थ यह भी लिया जा सकता है कि वह अपने स्वार्थी बन्धु को दूर कर देता है तथा जगत को अपने प्रति पागल (आकर्षित) कर लेता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
44. विण्णि वि दोस हवंति तसु जो सम-भाउ करेइ।
बंधु जि णिहणइ अप्पणउ अणु जगु गहिलु करेइ।।
अर्थ - जो रागद्वेष रहित तटस्थ भाव को धारण करता है, उसके दो दोष भी होते हैं। (एक) वह अपने (कर्म) बंधन को नष्ट कर देता है, (दूसरा) फिर जगत को अपने प्रति कठोर बना देता है।
शब्दार्थ - विण्णि-दो, वि-ही, दोस-दोष, हवंति-होते हैं, तसु-उसके, जो-जो, सम-भाउ-रागद्वेष से रहित तटस्थ भाव, करेइ-धारण करता है, बंधु-बंधन को, जि-भी, णिहणइ-नष्ट कर देता है, अप्पणउ- अपने, अणु-फिर, जगु-जग को, गहिलु-कठोर, करेइ-बना देता है।
(बन्धुओं, अब यहाँ पूर्ववत परमात्मप्रकाश से सम्बन्धित ही ब्लाँग दिया जायेगा। प्रश्नोत्तरी फेसबुक पर दी जा रही है।)
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