वर्तमान जगत में सुखी कौन है ?
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि मोक्ष अर्थात् परमशान्ति की प्राप्ति का उद्देश्य इह और परलोक दोनो से ही होना चाहिए। जिस जीव में वर्तमान जगत में शान्ति प्राप्त करने की योग्यता आ जाती है, वही जीव पर लोक मे शान्ति प्राप्त करने के योग्य हो पाता है। उनके अनुसार वर्तमान जगत में इस योग्यता का आधार है, तत्त्व और अतत्व को मन में समझना, रागद्वेष से रहित होना, तथा आत्म स्वभाव में प्रेम रखना। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
43. तत्तातत्तु मुणेवि मणि जे थक्का सम-भावि।
ते पर सुहिया इत्थु जगि जहँ रइ अप्प-सहावि।।
अर्थ - जो तत्व और अतत्व को मन में समझकर राग द्वेष रहित (तटस्थ) भाव में स्थित हैं (तथा) जिनकी आत्म-स्वभाव में रति है, वे यहाँ संसार में परम सुखी हैं।
शब्दार्थ - तत्तातत्तु - तत्व और अतत्व को, मुणेवि-जानकर, मणि-मन में, जे-जो, थक्का, सम-भावि-तटस्थ भाव में, ते -वे, पर-परम, सुहिया -सुखी, इत्थु -यहाँ, जगि-संसार में, जहँ-जिनकी, रइ-रति, अप्प-सहावि-आत्म स्वभाव में।
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