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वानरवंशियों में एक ही राजा ‘बालि’ विशिष्ट क्यो ?


Sneh Jain

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रामकथाके माध्यम से हम अब तक इक्ष्वाकु, विद्याधर, वानर राक्षसवंश से परिचित हो चुके हैं। उसमें हमने देखा कि सभी वानरवशी राजा पहले राक्षसवंश के साथ थे तथा दोनों में परष्पर मैत्री सम्बन्ध रहा है किन्तु  रावण द्वारा सीता का हरण किये बाद वानरवंश इक्ष्वाकुवंशी राम के साथ हो गया। अब हमें यह देखना है कि इन वानरवंशियों में मात्र एक राजा था जिसकी रावण से शत्रुता हुई वह राजा था बालि। सब के साथ रहकर भी अकेला बालि किस प्रकार स्वबोध में पूर्णता को प्राप्त था, यह हम देखते है पउमचरिउ में वर्णित बालि के जीवन कथन में।    

काव्य में बालि की शक्ति के विषय में इस प्रकार उल्लेख मिला है -उसके पास जो कंठा है वह त्रिभुवन में किसी दूसरे आदमी के पास नहीं है। सूर्य अपना रथ और घोड़े जोतकर एक योजन भी नहीं जा पाता जब तक वह मेरु की प्रदक्षिणा देकर और जिनवर की वन्दना करके वापस जाता है। उसके पास जो सेना है वह इन्द्र के पास भी नहीं है। अमर्ष से भरकर वह सुमेरुपर्वत को चलायमान कर सकता है। उसकी तुलना में दूसरे राजा तृण के समान हैं। कैलाश पर्वत पर जाकर उसने निर्ग्रन्थ मुनि को छोड़कर किसी और को नमस्कार नहीं करने का व्रत ले लिया है। उसे दृढ़ देखकर उसके पिता सूर्यरज ने भी प्रव्रज्या ग्रहण कर ली कि इस कारण कहीं रावण से मेरा युद्ध नहीं हो जाये।

अपने व्रत का निर्वाह करने के कारण एक दिन बाली ने रावण की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया, इससे बाली रावण के मध्य युद्ध हुआ। उसे युद्ध में बालि ने रावण को पराजित कर दिया। उसके बाद बालि ने सुग्रीव को कहा- ‘मेरा सिर त्रिलोकाधिपति को प्रणाम करने के बाद अब यह किसी दूसरे को नमस्कार नहीं करता, अब तुम स्वतन्त्र होकर राज्यश्री का उपभोग करो।यह कहकर बालि ने गगनचन्द नामक गुरु से तपश्चरण ग्रहण कर तथा अहिंसा आदि पाँच महाव्रतों को धारण कर अष्टापद शिखर पर चढ़कर आतापिनी शिला पर स्थित हो गये। 

अचानक उधर से ही गुजर रहे रावण का पुष्पक विमान बालि मुनि की तपस्या के तेज से रुक गया। तब  क्रोधित होकर रावण ने बालि मुनि को ललकारा कि मुनि अवस्था में भी तुम क्रोधाग्नि की ज्वाला में जल रहे हो और उसके बाद रावण ने कैलाश पर्वत को उखाड़कर समुद्र में फेंक दिया, जिससे पृथ्वी पर भयंकर उपद्रव हो उठा। तभी बालीमुनि पर उपसर्ग हुआ जानकर पाताललोक का नागराज वहाँ आया। वहाँ आकर उसने जैसे ही बालिमुनि की प्रदक्षिणा कर उनको प्रणाम किया वैसे ही कैलाश पर्वत नीचा हो गया और रावण के दसों मुख से रक्त की धारा बह निकली। पीड़ित दशानन के हाहाकार से समस्त अन्तःपुर हाहाकार कर उठा। मन्दोदरी के द्वारा नागराज धरणेन्द्र से पति के प्राणों की भीख माँगने पर नागराज ने धरती उठा ली। तब रावण ने बालि मुनि के पास जाकर उनकी वन्दना की और अपने द्वारा किये गये उपसर्ग के प्रति बालि मुनि से क्षमायाचना की।

इस प्रकार हम देखते हैं कि वानरवंश में बालि ही एक ऐसा पात्र था जिसे स्वचेतना की किंचित भी परतन्त्रता मान्य नहीं है और अपनी इस ही विशिष्टता के कारण उसने रावण को भी क्षमायाचना करने हेतु विवश किया।

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