जागरूकता सफलता प्राप्ति की एक आवश्यक सीढी है
हम पुनः वंदन करते हंै, आचार्य रविषेण, आचार्य विमलसूरि, कवि स्वयंभू, तुलसीदास आदि अन्य सभी रामकाव्यकारों को जिन्होंने राम काव्य की रचना कर मानव के कल्याण हेतु मार्ग प्रदर्शित किया। आगे हम रामकाव्य के जाम्बवन्त पात्र का कथन करते हैं, जिसने राम को सीता की प्राप्ति में सहयोग दिया।
काव्य के प्रारम्भिक काण्डों में जाम्बवन्त के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं मिलता। मात्र 67वीं संधि के 14वें कडवक में सुग्रीव द्वारा की गई व्यूह रचना में जाम्बवन्त का उल्लेख इस प्रकार मिलता है- जो बुद्धि में सबसे बड़ा था और जिसकी पताका में भयंकर रीछ अंकित था, पेड़ांे के अस्त्र लिए वह जम्बू (जाम्बवन्त) सातवें दरवाजे पर स्थित हो गया। इससे लगता है कि यह भी वानरवंशियों के समान किसी ऐसे समुदाय से सम्बन्धित था जिनका रीछ से कोई न कोई सम्बन्ध रहा हो साथ ही वानरवंशियों के आसपास ही इनका निवास होना चाहिए। इनकी विशाल बुद्धि के कारण ही अपने आस पास की सम्पूर्ण जानकारी इनके पास होती है। किष्किन्धानरेश सुग्रीव, माया सुग्रीव से पराजित होकर सहायतार्थ राम के पास आते हैं, तब जाम्बवन्त ही सुग्रीव के विषय में समस्त वृत्तान्त बताकर राम को आश्वस्त करते हैं तथा जब सुग्रीव को राम, लक्ष्मण व रावण के चरित्र के विषय में सन्देह उत्पन्न होता है तब जाम्बवन्त ही रावण की अपेक्षा राम व लक्ष्मण के चरित्र को श्रेष्ठ बताकर सुग्रीव की भ्रान्ति का निराकरण करते हैं। उसके बाद ही सुग्रीव, रावण को छोड़कर राम की शरण लेने का निश्चय करते हैं।
सुग्रीव के द्वारा सीतादेवी की खोज करने में समर्थ व्यक्ति के विषय में पूछा जाने पर जाम्बवन्त ने ही सुग्रीव को हनुमान का नाम सुझाया। उसने कहा, ‘हनुमान को छोड़कर यह काम कौन कर सकता है ? हनुमान के मिलने से अशेेष जग मिल जायेगा, जयलक्ष्मी के साथ विजय उसी की होगी जिसके पक्ष में हनुमान होगा, शायद खरदूषण व शम्बूक के मारे जाने के क्रोध को लेकर हनुमान रावण से मिल जाये, यदि जानते हो तो उसे लाने का उपाय सोचो।’ जाम्बवन्त के इस परामर्श को सुनकर सुग्रीव ने दूत को हनुमान के पास भेजा। इसप्रकार जाम्बवन्त के कारण ही हनुमान राम को मिल सके।
रावण से युद्ध करने के लिए प्रस्थान करते समय राम को मार्ग में गन्धोदक, चन्दन, नग्नसाधु, सफेद गज, अनुकूल पवन आदि शुभ शकुन दिखाई दिये। इनको देखकर जाम्बवन्त ने राम को उनका गमन सफल होना बताया। राम ने जाम्बवन्त से अपनी सेना के प्रमुख लोगों के कार्यक्षेत्र के विषय में पूछा। तब जाम्बवन्त ने आज्ञापालन में सुसेन, विनय में कुन्द, पंचांग मंत्र में मतिसमुद्र, दूतकार्य में अंग व अंगद, प्रस्थान के समय नल और नील, युद्ध करने में लक्ष्मण व हनुमान तथा विजयकाल में राम व लक्ष्मण को समर्थ बताया। यह सुनकर राम ने दूत का कार्यभार अंगद को सांैपते हुए उसे रावण के पास संधि करने का प्रस्ताव लेकर भेजा। राम व रावण के बीच निरन्तर चल रहे युद्ध में जाम्बवन्त ने देवताओं के लिए भी अभेद्य पंचव्यूह की रचना की।
इस प्रकार हमने इसमें देखा कि सफलता की प्राप्ति हेतु कितने प्रकार के सहयोग की आवश्यक्ता होती है तथा विभिन्न प्रकार के सहयोग से ही कार्य सिद्धि संभव है। जाम्बवन्त का भी राम को सीता की प्राप्ति कराने में अद्भुत् योगदान रहा है।
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