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(चारित्रवानों के संगठन से ही बुराईयों का विनाश सम्भव) राम को सीता की प्राप्ति में नल-नील, अंग-अंगद का सहयोग


Sneh Jain

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आगम के अनुसार पुण्य से सुख की प्राप्ति तथा पाप से दुःख की प्राप्ति निश्चित है। इसका सीधा सा मतलब है जो क्रिया स्वयं को तथा दूसरे को सुख दे वह क्रिया पुण्य देने वाली है किन्तु इसके विपरीत जो क्रिया स्वयं के साथ दूसरे के लिए भी दुखदायी हो वह क्रिया पाप देनेवाली है। आगम में पाँच पाप (हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह) तथा चार कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) को जो मानव का अहित करनेवाली है उनको अशुभ क्रिया के अन्तर्गत रखा गया है और क्षमा, विनय, सहजता, सत्य, निर्मल, संयम, तप, त्याग, सीमित परिग्रह, शीलव्रत का पालन को शुभ क्रिया में स्थान दिया गया है। रावण ने राम की पत्नी का अपहरण कर स्वयं के शीलव्रत को दूषित किया, राम के गृहस्थधर्म के आधार को उनसे अलग कर उनके लिए दुःख उत्पन्न किया। वानरवंशी राजा सुग्रीव हनुमान आदि नेे जब रावण द्वारा सीता का हरण किया जाना सुना तो उनके मन में एक विषम स्थिति उत्पन्न हो गयी। अब तक जो वानरवंशी राजा, राक्षसवंशी रावण आदि के पक्ष में रहकर विद्याधरों से युद्ध करते आये थे तथा विद्याधरों से डरे हुए वानरवंशियों की रावण आदि राक्षसवंशी राजाओं ने सदैव सहायता कर रक्षा की थी, अब उन वानरवंशियों के लिए राम के लिए रावण से लडना कितना कठिन काम था। लेकिन हनुमान आदि वानरवंशियों ने सद्चरित्र के आधार पर निर्णय कर रावण के विरुद्ध नल, नील, अंग, अंगद आदि की सेना सहित राम का सहयोग करना उचित समझा। यही है चारित्र की महत्ता। चारित्रवान ही चारित्र की रक्षा कर सकता है तथा चारित्रवानों के संगठन से ही बुराई का विनाश सम्भव है। आगे हम देखते हैं, किस प्रकार नल, नील, अंग अंगद ने राम को सहयोग प्रदान किया। 

नल नील वानरवंशी ऋक्षुरज के तथा अंग अंगद सुग्रीव के पुत्र थे। सुग्रीव के आदेश पर नल, नील, अंग अंगद ने अपने अपने सैन्य सहित सीता की तलाश करने हेतु पश्चिम की ओर प्रस्थान किया। सीता के विषय में जानकारी प्राप्त करने के पश्चात् जब राम रावण से युद्ध करने निकले तब भी ये सब अपने अपने सैन्य सहित उनके साथ गये। मार्ग में वेलन्धरनगर पहुँचने पर वहाँ के सेतु और समुद्र नामक दो विद्याधर राम की सेना से युद्ध करने के लिए स्थित हो गये। तब नल ने समुद्र को और नील ने सेतु को युद्ध में पराजित कर राम के चरणों में लाकर रख दिया। राम रावण की सेना के मध्य हुए युद्ध में नल हस्त से और नील प्रहस्त से भिड़ गया। नल ने  हस्त को घायल कर दिया तथा नील ने प्रहस्त को मार गिराया। राम जब लंका से सीता को प्राप्त कर अयोध्या लौटकर आये तब भामण्डल, किष्किन्धाराज, विभीषण आदि के साथ नल नील ने भी राम का राज्याभिषेक किया।

राम के द्वारा अंग अंगद को दूत का कार्यभार सौंपने पर दोनों ने दूत के कत्र्तव्य का सफलतापूर्वक निर्वाह किया तथा रावण के साथ हुए युद्ध में भी दोनों ने राम का पूरा साथ दिया। अंगद ने हनुमान को कुम्भकर्ण से मुक्त करवाया। लक्ष्मण की औेषधि रूप में विशल्या का गन्धजल लाने के लिए अंगद हनुमान का सहायक बनकर अयोध्या गया। रावण द्वारा बहुरूपिणी विद्या सिद्ध करने हेतु साधना किया जाने पर राम की सेना में   सर्वनाश का भय उत्पन्न हुआ। तभी अंग और अंगद ने रावण के पास पहुँचकर उसमें क्षोभ उत्पन्न करने का प्रयास किया। तब उसके हाथ से अक्षमाला छीनकर उसको झूठे तप ध्यान से लोगों को भ्रमित करनेे के लिए फटकारा तथा दूसरों की स्त्री का अपहरण करने से शान्ति मिलना असम्भव बताया। राम जब लंका से सीता को प्राप्त कर अयोध्या लौटकर आये तब भामण्डल, किष्किन्धाराज, विभीषण आदि के साथ अंग अंगद ने भी राम का राज्याभिषेक किया। इस प्रकार सब के सहयोग से ही राम सीता को प्राप्त कर सके।

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