वानरवंशियों का रावण को छोड़कर राम को सहयोग क्यो ?
आगम में धर्म दो प्रकार का बताया गया है- 1 गृहस्थ धर्म 2. मुनि धर्म। गृहस्थ धर्म का उद्भव युवक -युवती का विवाह सूत्र में बंधकर पति-पत्नि का सम्बन्ध जुडने से प्रारम्भ होता है। इसीलिए विवाह को एक पवित्र व धार्मिक संस्कार की संज्ञा दी है। जबकि मुनि धर्म अंगीकार करने में युवती का कोई स्थान नहीं वहाँ मोक्षरूा लक्ष्मी की ही चाह रहती है। गृहस्थ धर्मं का भली भाँति निर्वाह पति-पत्नि दोनों के चारित्र पर निर्भर है। दोनों का चारित्र एक दूसरे की सुरक्षा, एक दूसरे को सद्मार्ग में चलने पर सहयोग करने पर ही फलता -फूलता है। राम और सीता ने भी वैवाहिक जीवन में राम के राज्यपद प्राप्त करने से पूर्व तक अपने गृहस्थ धर्म का भली भाँति निर्वाह किया। राम के द्वारा वनवास अंगीकार करने पर वनवास पर्यन्त राम का सहयोग करने के कारण सीता ने भी राम के साथ वनवास अंगीकार किया। दोनों ने वनवास पर्यन्त एक दूसरे की इच्छा का पूरा ध्यान रखा। अकस्मात् राम लक्ष्मण की सहायता के लिए सीता को अकेला छोडकर कुछ समय के लिए चले गये तब सीता का हरण हो गया। सीता के हरण होने पर राम ‘हा सीता’ ‘हा सीता’ कहते हुए मुच्र्छित हो जाते और करुण विलाप करते हुए भ्रमण करते।
सीता के वियोग में करुण विलाप करते राम को मार्ग में आये मुनिराज ने भी सीता के वियोग में अति दुःख करने से रोका और बहुत समझाया। तब भी सीता के प्रेम मे दृढ राम ने निरन्तर अश्रुधारा छोड़ते हुए कहा- हे मुनिराज! ग्राम, श्रेष्ठ नगर, महागज, आज्ञाकारी भृत्य, आदि सब कुछ प्राप्त किये जा सकते हैं, किन्तु एैसा स्त्रीरत्न प्राप्त नही किया जा सकता है।जाम्बवन्त के द्वारा राम के शोक को कम करने हेतु 13 रूपवान कन्याएँ देने की बात कही। तब भी राम ने प्रत्युत्तर में कहा कि यदि रंभा या तिलोत्तमा भी हो तो सीता की तुलना में मेरे लिए कुछ भी नहीं है। ऐेसा था राम का सीता के प्रति प्रेम और इस ही प्रेम की रक्षा सीता ने लंका में रहते हुए रावण से की थी। यही कारण था कि वानरवंशी राजाओं ने परस्त्री हरण करनेवाले का साथ छोड़कर अपनी पत्नी के प्रति धर्म निर्वाह करनेवाले राम का साथ दिया।
इस इसवह को पढकर हमें भी किसी का सहयोग करने से पूर्व भलीभाँति विचार करना चाहिए कि जिसका हम सहयोग करने जा रहे हैं, वह सहयोग देने का पात्र है भी या नहीं। यदि हमने ऐसा करना प्रारंभ कर दिया तो निश्चित मानिए कि आपके सहयोग मात्र से निश्चित रूप से सदैव सत्य की ही विजय होगी, और विश्व में सत्य का ही डंका बजेगा। क्योंकि असहायहो णत्थि सिद्धि अर्थात असहाय की सिद्धि नहीं होती, और जब आप गलत को सहयोग नहीं करेंगे तो गलत कार्य की सिद्धि होगी ही नहीं और विश्व से बुराइयों का नाश होता चला जायेगा।
मेरा अनुरोध है, आप इस को पढकर इस पर अमल करना अवश्य प्रारंभ करे ।
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