द्रव्यों की सही समझ ही ज्ञान है
आचार्य योगीन्दु ज्ञान के विषय में कहते हैं कि जो द्रव्य जिस तरह स्थित है उसको जो उस ही प्रकार जानता है, आत्मा के जानने का वह सही स्वभाव ही ज्ञान है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
29. जं जह थक्कउ दव्वु जिय तं तह जाणइ जो जि।
अप्पहं केरउ भावडउ णाणु मुणिज्जहि सो जि।।29।।
अर्थ - जो द्रव्य जिस तरह स्थित है (और) उसको जो (आत्मा) उस ही प्रकार जानता है, (उस) आत्मा के उस स्वभाव (सहज गुण) को ही तू ज्ञान समझ।
शब्दार्थ - जं - जो, जह-जिस प्रकार, थक्कउ-स्थित, दव्वु -द्रव्य, जिय-हे जीव!, तं-उसको, तह-उसी प्रकार, जाणइ-जानता है, जो-जो, जि-ही, अप्पहं - आत्मा के, केरउ-सम्बन्धवाची परसर्ग, भावडउ-स्वभाव, णाणु -ज्ञान, मुणिज्जहि-समझ, सो-उसको, जि-ही।
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