काल द्रव्य का संक्षेप में कथन
आचार्य योगिन्दु काल द्रव्य के विषय में कहते हैं कि परावर्तन का हेतु ही काल द्रव्य है। मणियों की माला में जिस प्रकार प्रत्येक मणि का पार्थक्य है उसी प्रकार सृष्टि में विद्यमान काल के अणु भी प्रत्येक अणु से पार्थक्य लिए विद्यमान हैं। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
21. कालु मुणिज्जहि दव्वु तुहुँ वट्टण-लक्खणु एउ।
रयणहँ रासि विभिण्ण जिम तसु अणुयहँ तह भेउ।।
अर्थ - तू इस परावर्तन के हेतु को काल द्रव्य जान। रत्नों की जुदारूप राशि के समान उस (काल) के अणुओं का भी उसी प्रकार पार्थक्य(विभाजन) है।
कालु-काल, मुणिज्जहि-जान, दव्वु-द्रव्य, तुहुँ -तू, वट्टण-लक्खणु -परावर्तन के हेतु को, एउ-इस, रयणहँ-रत्नों की, रासि-राशि, विभिण्ण-जुदा, जिम -के समान, तसु-उसके, अणुयहँ - अणुओं का, तह-उसी प्रकार, भेउ-पार्थक्य।
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