धर्म, अधर्म व आकाश द्रव्य प्रदेशों से अखंडित हैं
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि छः द्रव्यों में से जीव, पुद्गल व काल द्रव्य के अतिरिक्त धर्म, अधर्म व आकाश द्रव्य अपने प्रदेशों से अखंडित हैं। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
22. जीउ वि पुग्गलु कालु जिय ए मेल्लेविणु दव्व।।
इयर अखंड वियाणि तुहुं अप्प-पएसहि ँ सव्व।।
अर्थ - हे प्राणी! तू जीव, पुदगल और काल इन (तीन) द्रव्यों को छोड़कर दूसरे अन्य सब (धर्म, अधर्म, आकाश द्रव्य) को अपने प्रदेशों से अखंडित (परिपूर्ण) समझ।
शब्दार्थ - जीउ-जीव, वि-और, पुग्गलु -पुद्गल, कालु-काल को, जिय- प्राणी! ए-हे, मेल्लेविणु - छोड़कर, दव्व-द्रव्यों को, इयर-अन्य, अखंड-परिपूर्ण, वियाणि-जान, तुहुं -तू, अप्प-पएसहि ँ-आत्मप्रदेशों से सव्व-सव्व
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