आकाश द्रव्य का संक्षेप में कथन
जीव, पुद्गल, धर्म व अधर्म द्रव्य के बाद आचार्य योगीन्दु आकाश द्रव्य के विषय में कहते हैं कि समस्त द्रव्य जिसमें भलीभाँति व्यवस्थित हैं वही आकाश द्रव्य है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
20. दव्वइं सयलइँ वरि ठियइँ णियमे ँ जासु वसंति।
तं णहु दव्वु वियाणि तुहुँ जिणवर एउ भणंति।।
अर्थ - समस्त द्रव्य जिसमें अच्छी तरह से व्यवस्थित रहते हैं, उसको तू निश्चयपूर्वक आकाश द्रव्य जान। जिनेन्द्रदेव यह कहते हैं।
शब्दार्थ - दव्वइं-द्रव्य, सयलइँ -समस्त, वरि-अच्छी तरह से, ठियइँ-व्यवस्थित, णियमे ँ-निश्चयपूर्वक, जासु-जिसमें, वसंति-रहते हैं, तं - उसको, णहु -आकाश, दव्वु-द्रव्य, वियाणि-जान, तुहुँ-तू, जिणवर-जिनेन्द्रदेव, एउ-यह, भणंति-कहते हैं।
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