पुद्गल, धर्म व अधर्म द्रव्य का संक्षेप में कथन
जीव द्रव्य के विषय में संक्षेप में कथन करने के बाद आचार्य योगिन्दु पुद्गल, धर्म व अधर्म द्रव्य के विषय में बताते हुए कहते हैं कि पुद्गल द्रव्य छः प्रकार के रूप से सहित होता है जबकि अन्य पाँचों द्रव्य रूप रहित होते हैं, तथा धर्म व अधर्म द्रव्य गति और स्थित का कारण है। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -
19 पुग्गलु छब्विहु मुत्तु वढ इयर अमुत्तु वियाणि।
धम्माधम्मु वि गयठियहँ कारणु पभणहि ँ णाणि।।
अर्थ - हे वत्स! पुद्गल को छः प्रकार का रूपवाला (तथा) अन्य को रूप रहित जान। ज्ञानी धर्म और अधर्म को विशेष रूप सेे गति और स्थित का कारण कहते हैं।
शब्दार्थ - पुग्गलु- पुद्गल को, छब्विहु-छः प्रकार का, मुत्तु-रूपवाला, वढ-हे वत्स, इयर-अन्य को, अमुत्तु -रूप रहित, वियाणि-जान, धम्माधम्मु-धर्म और अधर्म को, वि -विशेषरूप से, गयठियहँ - गति और स्थित का, कारणु-कारण, पभणहि ँ -कहते हैं, णाणि-ज्ञानी।
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