जीव द्रव्य का स्वरूप
छः द्रव्यों के नाम कथन के बाद आचार्य योगिन्दु प्रथम सचेतन जीव द्रव्य के स्वरूप के विषय में बताते हैं कि यह आत्मारूप जीवद्रव्य आकार रहित, ज्ञानमय, परम आनन्द स्वभाव, नित्य और निरंजन स्वरूप है। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -
18. मुत्ति-विहूणउ णाणमउ परमाणंद सहाउ।
णियमिं जोइय अप्पु मुणि णिच्चु णिरंजणु भाउ।।
अर्थ - हे योगी! आत्मा को तू निश्चय से आकार रहित, ज्ञानमय, परम आनन्द स्वभाव, नित्य और निरंजन स्वरूप जान।
शब्दार्थ - मुत्ति-विहूणउ - आकार रहित, णाणमउ-ज्ञानमय, परमाणंद- परम आनन्द, सहाउ-स्वभाव, णियमिं -नियम से, जोइय-हे योगी!, अप्पु-आत्मा को, मुणि-जान, णिच्चु-नित्य, णिरंजणु -निरंजन, भाउ-स्वरूप।
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