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द्रव्य विषयक कथन


Sneh Jain

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द्रव्य को ठीक तरह से जानना और उन पर श्रृद्धान करने को सम्यग्दर्शन का निमित्त बताने के बाद आचार्य योगिन्दु कहते हैं कि इन द्रव्यों के विषय में जन्म-मरण से रहित हुए ज्ञानी जनों (केवलज्ञान को प्राप्त हुए तीर्थंकरों) ने बताया है। ये द्रव्य जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इस प्रकार छः हैं, जो सम्पूर्ण त्रिभुवन में व्याप्त हैं। इनमें जीव सचेतन द्रव्य तथा पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल अचेतन द्रव्य हैं। देखिये इससे सम्बन्धित दो दोहे- 

16.   दव्वइँ जाणहि ताइँ छह तिहुयणु भरियउ जेहिँ।

      आइ-विणास-विवज्जियहिँ णाणिहिं पभणियएहिँं।।

अर्थ -उन द्रव्यों को जान, जिनसे यह त्रिभुवन भरा हुआ है। आवागमन और विनाश से रहित ऐसे ज्ञानियों (जिनेन्द्रदेवों ) के द्वारा इन द्रव्यों के विषय में कथन किया गया है। उनके अनुसार ये द्रव्य छः हैं।

शब्दार्थ - दव्वइँ -द्रव्यों को, जाणहि -जान, ताइँ - उन, छह-छः, तिहुयणु -त्रिभुवन, भरियउ-भरा हुआ है, जेहिँ-जिनसे, आइ-विणास-विवज्जियहिँ -आवागमन और विनाश से रहित, णाणिहिं-- ज्ञानियों के द्वारा,  पभणिय -कहे गये हैं, एहिँ- ऐसे।

17.   जीव सचेयणु दव्वु मुणि पंच अचेयण अण्ण।

      पोग्गलु धम्माहम्मु णहु काले ँसहिया भिण्ण।।  

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