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JainSamaj.World
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मोक्ष प्राप्ति में निमित्त


Sneh Jain

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अब तक आपने आत्मा के विषय में विस्तृतरूप से अध्ययन किया और अब आप  मोक्ष के विषय में जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। मैं आपसे पूछना चाहती हूँ कि अब तक आचार्य योगिन्दु द्वारा रचित दोहों को पढकर आपने योगिन्दु आचार्य के विषय में क्या धारणा बनायी ? मेरी धारणा का जहाँ तक सवाल है मैं तो इतना ही जान पायी हूँ इन जैसे विशुद्ध अध्यात्मकार आचार्य की तुलना मैं किसी भी आचार्य से नहीं कर सकती। या यह कहूँ कि अब तक के अध्ययन किये ग्रंथों में मेरा सबसे प्रिय ग्रंथ आचार्य योगिन्दुदेव द्वारा रचित यह परमात्मप्रकाश ही रहा है। आत्मा की चर्चा हो या मोक्ष की, इनकी सोच का दायरा बहुत ही विस्तृत देखते हैं। इनके मोक्षपरक दोहों का सम्बन्ध किसी विशेष से नहीं होकर प्रत्येक जीव से रहा है। उनके अनुसार मोक्ष पर मात्र पुरुष, साधु या मानवजाति का ही अधिकार नहीे है, बल्कि मोक्ष अर्थात शान्ति तो प्रत्येक जीव एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक चाहता है। पिछले दोहे में उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि क्या बँधे हुए पशु भी बंधन के दुःख से छूटकर शान्ति पाना नहीं चाहते हैं। आत्मा और आत्मशान्ति का सम्बन्ध एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय जीवों से तथा चारों गतियों के जीवों से हैं। आप भी आचार्य योगिन्दु के अध्यात्मवाद के विषय में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कीजिए।

आगे के दोहे में आचार्य ने श्रेष्ठ दर्शन, ज्ञान और चारित्र को ही मोक्ष के निमित्त बताये हैं। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -

 

12     जीवहँ मोक्खहँ हेउ वरु दंसणु णाणु चरित्तु।

        ते पुणु तिण्णि वि अप्पु मुणि णिच्छएँ एहउ वुत्तु।।

अर्थ - जीवों के मोक्ष का कारण श्रेष्ठ दर्शन, ज्ञान (और) चारित्र है। फिर उन तीनों (दर्शन, ज्ञान, चारित्र) को ही आत्मा जानो, निश्चय से ऐसा कहा गया है।

शब्दार्थ - जीवहँ - जीवों के, मोक्खहँ-मोक्ष का, हेउ-कारण, वरु-श्रेष्ठ, दंसणु-दर्शन, णाणु -ज्ञान, चरित्तु-चारित्र, ते-उन,  पुणु-फिर, तिण्णि-तीनों को, वि-ही, अप्पु-आत्मा, मुणि-जानो, णिच्छएँ -निश्चय से, एहउ-ऐसा, वुत्तु-कहा गया है।

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