मोक्ष का फल
मोक्ष के रूवरूप को जान लेने के बाद आचार्य योगीन्दु मोक्ष के परिणाम को बताते हैं। वे कहते हैं कि यह कैसे जाना जाये कि मोक्ष की प्राप्ति हो गयी है। इसके लिए वे मोक्ष प्राप्ति के परिणाम को बताते हुए कहते हैं कि मोक्ष प्राप्ति होने पर जीव के दर्शन, ज्ञान और अनन्त सुख एक साथ सदैव बने रहते हैं, वे कभी भी कम नहीं होते हैं। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -
11. दंसणु णाणु अणंत-सुहु समउ ण तुट्टइ जासु।
सो पर सासउ मोक्ख-फलु बिज्जउ अत्थि ण तासु।।
अर्थ - जिसके दर्शन, ज्ञान (और) अनन्त सुख एक साथ (रहता है), घटता नहीं है, उसके लिए वह (ही) पूरी तरह से शाश्वत मोक्ष का फल है, दूसरा नहीं।
शब्दार्थ - दंसणु -दर्शन, णाणु -ज्ञान, अणंत-सुहु -अनन्त सुख, समउ-एक साथ, ण-नहीं, तुट्टइ -घटता है, जासु-जिसके, सो -वह, पर-पूरी तरह से, सासउ-शाश्वत, मोक्ख-फलु-मोक्ष का फल, बिज्जउ-दूसरा, अत्थि-है, ण-नहीं, तासु-उसके लिए।
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