आखिर मोक्ष है क्या ?
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि मैंने अपनी परम्परा के ज्ञानी साधुओं से जो जाना है उसके अनुसार मोक्ष क्या है, वह मैं आपको बताता हूँ। वे कहते हैं कि जब जीव समस्त दोषों से रहित, पूर्ण निर्मल हो जाता है उस समय उसकी आत्मा जिस श्रेष्ठ स्वरूप को प्राप्त होती है, वही मोक्ष है। एक बार मोक्ष अर्थात शान्त अवस्था को प्राप्त हुआ जीव पुनः अशान्त नहीं होता। वह हमेशा के लिए जन्म-मरण के दोषों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष अर्थात शान्त अवस्था को प्राप्त हो जाता है। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -
10. जीवहँ सो पर मोक्खु मुणि जो परमप्पय-लाहु।
कम्म-कलंक-विमुक्काहँ णाणिय बोल्लहिँ साहू।।
अर्थ -कर्मरूपी दोषों से रहित जीवों के लिए जो श्रेष्ठ आत्मा की प्राप्ति है उसी को मात्र मोक्ष जान। (ऐसा) ज्ञानी साधु कहते हैं।
शब्दार्थ - जीवहँ - जीवों के लिए, सो- वह, पर-मात्र, मोक्खु-मोक्ष, मुणि-जान, जो-जो, परमप्पय-लाहु-परम आत्मा की प्राप्ति, कम्म-कलंक-विमुक्काहँ- कर्मरूपी दोषों से रहित जीवों के लिए, णाणिय -ज्ञानी, बोल्लहिँ-कहते हैं, साहू-साधु।
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