महान पुरुषों के जीवन का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति ही है
आचार्य योगिन्दु कहते हैं कि हरि, हर, ब्रह्मा, तीर्थंकर, श्रेष्ठ मुनि, सभी भव्य प्राणी भी अपने जीवन के अन्तिम काल में परम निरंजन अर्थात सिद्ध अवस्था को प्राप्त हुए सिद्धों में अपने मन को स्थापित कर मोक्ष का ही ध्यान करते हैं। वैसे भी त्रिभुवन में जीवों के लिए मात्र एक मोक्ष को छोड़कर कोई सुख का कारण नहीं है। परमात्मप्रकाश में इसलिए प्रत्येक भव्य जीव को अपने अन्तिम समय में मोक्ष का ही चिंतन करने का उपदेश दिया गया है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे के दो दोहे -
8. हरि-हर-बंभु वि जिणवर वि मुणि-वर-विंद वि भव्व।
परम-णिरंजणि मणु धरिवि मुक्खु जि झायहिँ सव्व।।
अर्थ -हरि, हर, ब्रह्मा और जिनेन्द्रदेव तथा श्रेष्ठ मुनिगण और सभी मुक्तिगामी जीव परम निरंजन में मन रखकर मोक्ष का ही ध्यान करते हैं।
शब्दार्थ - हरि-हर-बंभु- हरि, हर और ब्रह्मा, वि-और, जिणवर-जिनेन्द्रदेव, वि-तथा, मुणि-वर-विंद-श्रेष्ठ मुनिगण, वि-और, भव्व-मुक्तिगामी जीव, परम-णिरंजणि-परम निरंजन में, मणु-मन को, धरिवि-रखकर, मुक्खु-मोक्ष का, जि-ही, झायहिँ-ध्यान करते हैं, सव्व-सब।
9. तिहुयणि जीवहँ अत्थि णवि सोक्खहँ कारणु कोइ।
मुक्खु मुएविणु एक्कु पर तेणवि चिंतहि सोइ।।
अर्थ - त्रिभुवन में जीवों के लिए मात्र एक मोक्ष को छोड़कर कोई सुख का कारण नहीं है, इस कारण (तू) उसका ही चिंतन कर।
शब्दार्थ - तिहुयणि- त्रिभुवन में, जीवहँ-जीवों के लिए, अत्थि-है, णवि-नहीं, सोक्खहँ-सुख का, कारणु -कारण, कोइ-कोई, मुक्खु-मोक्ष को, मुएविणु-छोड़कर, एक्कु -एक, पर-मात्र, तेणवि-इस कारण, चिंतहि -चिंतन कर, सोइ- उसका ही।
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.