क्रमश: मोक्ष की श्रेष्ठता के ही प्रमाण
आगे इसी क्रम में आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि यदि मोक्ष अर्थात् शान्ति में सुख नहीं होता तो समस्त लोक उस मोक्ष अर्थात् उस शान्ति को ही सर्वश्रेष्ठ मानकर उसको सिर पर क्यों रखता ? और सिद्ध हमेशा उस सिद्धालय का ही आश्रय क्यों लेते ? देखिये इससे सम्बन्धित दो दोहे -
6. अणु जइ जगहँ वि अहिययरु गुण-गणु तासु ण होइ।
तो तइलोउ वि किं धरइ णिय-सिर-उप्परि सोइ।।
अर्थ -फिर यदि संसार से अधिकतर गुण समूह उस (मोक्ष) के नहीं भी होता है तो तीन लोक भी उस (मोक्ष) को ही अपने मस्तक पर क्यों रखता है ?
शब्दार्थ - अणु - फिर, जइ-यदि, जगहँ-संसार से, वि-भी, अहिययरु-अधिकतर, गुण-गणु- गुण समूह, तासु-उसके, ण-नहीं, होइ-होता है, तो-तब, तइलोउ -तीनलोक, वि-भी, किं -क्यों, धरइ -रखता है, णिय-सिर-उप्परि - अपने मस्तक के ऊपर, सोइ-उसको ही।
7. उत्तमु सुक्खु ण देइ जइ उत्तमु मुक्खु ण होइ।
तो किं सयलु वि कालु जिय सिद्ध वि सेवहिँ सोइ।।
अर्थ - यदि (मोक्ष) श्रेष्ठ सुख को नहीं देता तो मोक्ष श्रेष्ठ नहीं होता, फिर हे जीव! सिद्ध सम्पूर्ण समय ही उस (मोक्ष) का ही आश्रय क्यों करते ?
शब्दार्थ - उत्तमु -श्रेष्ठ, सुक्खु-सुख, ण-नहीं, देइ-देता है, जइ-यदि, उत्तमु-श्रेष्ठ, मुक्खु -मोक्ष, ण-नहीं, होइ-हो सकता, तो -फिर, किं-क्यों, सयलु-सम्पूर्ण, वि -ही, कालु -समय, जिय-हे जीव! सिद्ध-सिद्ध, वि-ही, सेवहि- आश्रय करते हैं, सोइ-उसका, ही।
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