सभी पुरुषार्थों में मोक्ष पुरुषार्थ श्रेष्ठ है
आचार्य योगिन्दु मोक्ष अधिकार में मोक्ष का कथन इस ही से प्रारम्भ करते हैं कि धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष जो ये चार प्रकार के पुरुषार्थ हैं इनमें मोक्ष पुरुषार्थ श्रेष्ठ है, क्योंकि परम सुख की प्राप्ति मोक्ष से ही संभव है। यहाँ सर्वप्रथम हम यह देखेंगे कि आखिर यह मोक्ष है क्या ? प्राकृत शब्दकोश में मोक्ष (मोक्ख) शब्द के अर्थ मिलते हैं, मुक्ति, निर्वाण, दुःख निवृत्ति, शान्ति, सुख, चैन। यदि हम विचार करें तो पायेंगे कि प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक क्षण इस मोक्ष के लिए ही तो प्रयत्नशील है। जब भी वह किसी दुःख से परेशान होता है तो वह उसी समय से उससे मुक्त होने का प्रयास प्रारम्भ कर देता है। प्रत्येक व्यक्ति की प्रत्येक क्रिया मोक्ष के लिए अर्थात दुःख से निवृत्ति व सुख की प्राप्ति के लिए ही तो होती है। धर्म, अर्थ काम से जुड़ी क्रिया भी तभी सार्थक होती है जब कि वह मोक्ष अर्थात् सुख प्रदान करे। व्यक्ति अज्ञान व रागवश की गयी क्रिया से दुःखी होता है तथा विवेक से वीतरागता प्राप्त कर मुक्ति को प्राप्त होता है। इसीलिए आचार्य महाराजजी ने मोक्ष के कथन में प्रारम्भ में चारों पुरुषार्थों में मोक्ष को श्रेष्ठ पुरुषार्थ कहा है, देखिये इससे सम्बन्धित दोहा-
3. धम्महँ अत्थहँ कामहँ वि एयहँ सयलहँ मोक्खु।
उत्तमु पभणहि ँ णाणि जिय अण्णे ँ जेण ण सोक्खु।।
. अर्थ - धर्म, अर्थ (और) काम इन सब से ज्ञानी पुरुष मोक्ष को उत्तम कहते हैं, क्योंकि (मोक्ष के) अतिरिक्त (धर्म, अर्थ, काम) से सुख (की प्राप्ति) नहीं है।
शब्दार्थ - धम्महँ-धर्म से, अत्थहँ-अर्थ से, कामहँ-काम से, वि-और, एयहँ-इन, सयलहँ-सबसे, मोक्खु-मोक्ष को, उत्तमु-उत्तम, पभणहि ँ-कहते हैं, णाणि-ज्ञानी, जिय-पुरुष, अण्णे ँ -अतिरिक्त, जेण-क्योंकि, ण -नहीं, सोक्खु-सुख।
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