आचार्य योगिन्दु द्वारा मोक्ष विषयक कथन का प्रारम्भ
आचार्य योगिन्दु मोक्ष विषयक कथन प्रारम्भ करने से पूर्व यह स्पष्ट कर देते हैं कि मोक्ष के विषय में मैं जो कुछ कह रहा हूँ वह मेरा कुछ भी नहीं है। जिनवर ने जैसा कहा है वह ही मैं तेरे लिए कह रहा हूँ। अर्थात् जिनवर की परम्परा में आगे के आचार्यों से मुझे जो मिला है वह ही मैं तेरे लिए कथन कर रहा हूँ । इससे तू मोक्ष को भली भाँति समझ सकेगा। यह आचार्य योगिन्दु के विनम्र भाव का द्योतक है।
2 जोइय मोक्खु वि मोक्ख-फलु पुच्छिउ मोक्खहँ हेउ।
सो जिण-भासिउ णिसुणि तुहुँ जेण वियाणहि भेउ।। 2।।
अर्थ - हे योगी! तेरे द्वारा मोक्ष, मोक्ष का फल और मोक्ष का कारण पूछा गया। जिनवर के द्वारा कथित उस (मोक्ष) को तू सुन, जिससे तू मोक्ष को विशेष रूप से जान सके।
शब्दार्थ - जोइय- हे योगी! मोक्खु-मोक्ष, वि-और, मोक्ख-फलु-मोक्ष का फल, पुच्छिउ-पूछा गया, मोक्खहँ -मोक्ष का, हेउ-कारण, सो - वह, जिण-भासिउ- जिनवर के द्वारा कथित, णिसुणि- सुन, तुहुँ-तू, जेण -जिससे, वियाणहि-जाने, भेउ-विशेष।
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