भट्टप्रभाकर का आचार्य योगीन्दु से मोक्ष विषयक प्रश्न
त्रिविधात्माधिकार के माध्यम से तीनों प्रकार की आत्मा के विषय में जानने के बाद भट्टप्रभाकर आचार्य योगिन्दु से मोक्ष के विषय में जानना चाहते हैं। इस ही गाथा से परमात्मप्रकाश के द्वितीय अधिकार का प्रारम्भ होता है। वे मोक्ष के विषय में प्रश्न करते हैं, इससे सम्बन्धित देखिये मोक्ष अधिकार की प्रथम गाथा - (कल से प्रारम्भ करेंगे आचार्य योगीन्दु का मोक्ष विषयक कथन)
1. सिरिगुरु अक्खहि मोक्खु महु मोक्खहँ कारणु तत्थु।
मोक्खहँ केरउ अण्णु फलु जे ँ जाणउँ परमत्थु।। 1।।
अर्थ - हे गुरुश्री! मेरे लिए मोक्ष, मोक्ष का वास्तविक कारण और मोक्ष का फल कहो, जिससे मैं परमार्थ को जानूँ।
शब्दार्थ - सिरिगुरु- हे गुरुश्री! अक्खहि-कहो, मोक्खु-मोक्ष, महु-मेरे लिए, मोक्खहँ -मोक्ष का, कारणु-कारण, तत्थु- वास्तविक, मोक्खहँ-मोक्ष का, केरउ- सम्बन्धवाची परसर्ग, अण्णु-और, फलु-फल, जे ँ -जिससे, जाणउँ - जानूँ, परमत्थ-सर्वोत्कृष्ट लक्ष्य को।
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