मोक्ष क्या है ? और मोक्ष का कारण क्या है ?
आचार्य योगीन्दु इस गााथा से ही त्रिविधात्माधिकार समाप्त करते हैं और इसके आगे की गाथा से मोक्ष अधिकार का प्रारम्भ करते हैं। वे कहते हैं कि जब स्वयं का निर्मल मन परमात्मा के निर्मल मन के समान हो गया तो फिर स्वयं का और परमात्मा का भेद समाप्त हो गया। वे आगे कहते हैं, विषय कषायरूप दोषों में जाते हुए जिसने अपने मन को वहाँ से हटाकर दोषों से रहित परमात्मा में लगा दिया, वही मोक्ष है। दोषों से हटना मोक्ष का कारण है तथा परमात्म अवस्था की प्राप्ति मोक्ष है। मोक्ष परमशान्ति, शाश्वत शान्ति का ही दूसरा नाम है। एक बार परमशान्तिरूप शाश्वत शान्ति को प्राप्त हुआ जीव दुबारा अशान्ति को प्राप्त नहीं होता है। अगले सप्ताह से मोक्ष अधिकार प्रारम्भ किया जायेगा। यहाँ विशेषरूप से यह बताया गया है कि सम्पूर्ण दोषों से रहित अवस्था ही परमात्म अवस्था है और यह परमात्म अवस्था ही मोक्ष अर्थात् परमशान्ति है। देखिये इससे सम्बन्धित इस प्रथम अधिकार का अन्तिम दोहा -
123.3 जेण णिरंजणि मणु धरिउ विसय-कसायहि ँ जंतु।
मोक्खहँ कारणु एत्तडउ अण्णु ण तंतु ण मंतु।।
अर्थ - जिसके द्वारा विषय-कषायों में जाते हुए मन को दोषों से रहित (परमात्मा) में रखा गया है, यह ही मोक्ष (परम शान्ति) का कारण है, अन्य ना तंत्र (और) ना (ही) मंत्र (परम शान्ति का कारण है।)
शब्दार्थ - जेण- जिसके द्वारा, णिरंजणि-दोषों से रहित, मणु -मन, धरिउ-रखा गया, विसय-कसायहि ँ- विषय कषायों में, जंतु - जाते हुए, मोक्खहँ - मोक्ष का, कारणु-कारण, एत्तडउ-यह, अण्णु-अन्य, ण-नहीं, तंत-तंत्र, ण-नहीं, मंतु-मंत्र।
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