परमात्मा स्वयं में ही है
जैसा कि मैं पूर्व में बता चुकी हूँ परमात्मप्रकाश में तीन अधिकार हैं। 1 त्रिविध आत्मा अधिकार 2 मोक्ष अधिकार 3 महा अधिकार । प्रथम त्रिविधात्माधिकार को आज हम अन्तिम दो दोहों के साथ समाप्त करने जा रहे हैं। वैसे तो अन्त का एक दोहा और शेष रहता है किन्तु इस अधिकार का अन्तिम दोहा आगे के मोक्ष अधिकार के प्रारम्भ का ही कार्य करता है। त्रिविध आत्मा अधिकार में हमने आत्मा के तीन प्रकारों बहिरात्मा, अन्तरात्मा तथा परमात्मा को बहुत ही स्पष्टरूप से समझा। बहिरात्मा से परमात्मा तक की यात्रा करने के बाद इस अधिकार अन्त के दो दोहे में यही कहा गया है कि परमात्मा कही बाहर नहीं वह अपने समचित्त में ही है। परमात्मा के समान स्वयं का भी समचित्त हो जाने पर परमात्मा व स्वयं का भेद समाप्त हो जाता है। देखिये इससे सम्बन्धित दो दोहे - इसके बाद परमात्मप्रकाश के द्वितीय मोक्ष अधिकार का विवेचन प्रारम्भ होगा । आशा है वह भी आपके लिए रोचक एवं उपयोगी सिद्ध होगा।
123. 1 देउ ण देउले णवि सिलए णवि लिप्पइ णवि चित्ति ।
अखउ णिरंजणु णाणमउ सिउ संठिउ सम-चित्ति।।
अर्थ - परमात्मा देवालय में नहीं, न, ही पत्थर में, न, ही मूर्ति घड़ने में (और) न, ही चित्र में है, (वह) अविनाशी, निरंजन (और) ज्ञानमय परमात्मा समतावान के चित्त में सम्यक्रूप से स्थित है।
शब्दार्थ - देउ-परमात्मा, ण-नहीं, देउले-देवालय में, णवि-न, ही, सिलए-पत्थर में, णवि-न, ही, लिप्पइ-मूर्ति घड़ने में, णवि-न,ही, चित्ति-चित्र में, अखउ-अविनाशी, णिरंजणु-निरंजन, णाणमउ-ज्ञानमय, सिउ-परमात्मा, संठिउ-सम्यक्रूप से स्थित, सम-चित्ति-समतावान के चित्त में।
123. 2 मणु मिलियउ परमेसरहँ परमेसरु वि मणस्स।
बीहि वि समरसि हूवाहँ पुज्ज चडावउँ कस्स।।
अर्थ - मन परमेश्वर से मिल गया (और) परमेश्वर भी मन से (मिल गया), (अतः अब) दोनों के ही समरस होने पर पूजा की सामग्री किसके लिए चढाऊँ ?
शब्दार्थ - मणु-मन, मिलियउ-मिल गया, परमेसरहँ-परमेश्वर से, परमेसरु-परमेश्वर, वि-भी, मणस्स-मन से, बीहि-दोनों के, वि-ही, समरसि-समरस, हूवाहँ-होने पर, पुज्ज-पूजा की सामग्री, चडावउं-चढाउँ कस्स- किसके लिए।
123.3 जेण णिरंजणि मणु धरिउ विसय-कसायहि ँ जंतु।
मोक्खहँ कारणु एत्तडउ अण्णु ण तंतु ण मंतु।।
जिसके द्वारा विषय-कषायों में जाते हुए मन को दोषों से रहित (परमात्मा) में रखा गया है, यह ही मोक्ष (परम शान्ति) का कारण है, अन्य ना तंत्र (और) ना (ही) मंत्र (परम शान्ति का कारण है।)
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