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निर्मल मन में परमात्मा का दर्शन संभव है


Sneh Jain

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आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि परमात्मा की खोज करने के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यक्ता नहीं है। अपनी आत्मा में ही  परमात्मा के दर्शन हो सकते है, लेकिन इसके लिए मन की निर्मलता आवश्यक है। मलिन मन में परमात्मा का दर्शन नहीं हो सकता। देखिये इससे सम्बन्धित आगे के दो दोहे -

119.    जोइय णिय-मणि णिम्मलए पर दीसइ सिउ संतु।

        अंबरि णिम्मलि घण-रहिए भाणु जि जेम फुरंतु।।

अर्थ -  हे योगी! अपने निर्मल मन में शान्त परमात्मा पूरी तरह से दिखाई देता है, जिस प्रकार बादलों से रहित निर्मल आकाश में ही चमकता हुआ सूर्य (दिखाई देता है)

शब्दार्थ - जोइय- हे योगी!, णिय-मणि- अपने मन में, णिम्मलए-निर्मल, पर-पूरी तरह से, दीसइ-दिखायी देता है, सिउ-परमात्मा, संतु-शांत, अंबरि- आकाश में, णिम्मलि-निर्मल, घण-रहिए-बादलों से रहित, भाणु -सूर्य,जि-ही, जेम-जिस प्रकार, फुरंतु-चमकता हुआ

120.     राएँ रंगिए हियवडए देउ दीसइ संतु।

        दप्पणि मइलए बिंबु जिम एहउ जाणि णिभंतु।।

अर्थ -  जिस प्रकार मलिन दर्पण में प्रतिबिम्ब (नहीं) (दिखाई देता), (उसी प्रकार)राग से रंगे हुए हृदय में परमात्मा नहीं दिखाई देता। इसको तू संशय रहित होकर समझ।

शब्दार्थ - राएँ -राग से, रंगिए-रंगे हुए, हियवडए-हृदय में, देउ-परमात्मा, -नहीं, दीसइ-दिखायी देता, संत-शांत, दप्पणि-दर्पण में, मइलए-मलिन, बिंबु -प्रतिबिम्ब, जिम-जिस प्रकार, एहउ-इसको, जाणि -समझ, णिभंतु-संशय रहित।

आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि परमात्मा की खोज करने के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यक्ता नहीं है। अपनी आत्मा में ही  परमात्मा के दर्शन हो सकते है, लेकिन इसके लिए मन की निर्मलता आवश्यक है। मलिन मन में परमात्मा का दर्शन नहीं हो सकता। देखिये इससे सम्बन्धित आगे के दो दोहे -

119.    जोइय णिय-मणि णिम्मलए पर दीसइ सिउ संतु।

        अंबरि णिम्मलि घण-रहिए भाणु जि जेम फुरंतु।।

अर्थ -  हे योगी! अपने निर्मल मन में शान्त परमात्मा पूरी तरह से दिखाई देता है, जिस प्रकार बादलों से रहित निर्मल आकाश में ही चमकता हुआ सूर्य (दिखाई देता है)

शब्दार्थ - जोइय- हे योगी!, णिय-मणि- अपने मन में, णिम्मलए-निर्मल, पर-पूरी तरह से, दीसइ-दिखायी देता है, सिउ-परमात्मा, संतु-शांत, अंबरि- आकाश में, णिम्मलि-निर्मल, घण-रहिए-बादलों से रहित, भाणु -सूर्य,जि-ही, जेम-जिस प्रकार, फुरंतु-चमकता हुआ

120.     राएँ रंगिए हियवडए देउ दीसइ संतु।

        दप्पणि मइलए बिंबु जिम एहउ जाणि णिभंतु।।

अर्थ -  जिस प्रकार मलिन दर्पण में प्रतिबिम्ब (नहीं) (दिखाई देता), (उसी प्रकार)राग से रंगे हुए हृदय में परमात्मा नहीं दिखाई देता। इसको तू संशय रहित होकर समझ।

शब्दार्थ - राएँ -राग से, रंगिए-रंगे हुए, हियवडए-हृदय में, देउ-परमात्मा, -नहीं, दीसइ-दिखायी देता, संत-शांत, दप्पणि-दर्पण में, मइलए-मलिन, बिंबु -प्रतिबिम्ब, जिम-जिस प्रकार, एहउ-इसको, जाणि -समझ, णिभंतु-संशय रहित।

 

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