आत्मा के दर्शन का सुख सभी राग रहित के लिए समान है
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि सभी जीवों को आत्मा के दर्शन से प्राप्त होनेवाला सुख समान कोटि का होता है। सभी जीवों को आत्म दर्शन तभी सम्भव है जब उनका मन राग रहित हो। राग ही द्वेष का कारण होता है। राग रहित मन ही द्वेष रहित होता है तथा राग और द्वेष रहित निर्मल मन में ही स्पष्ट आत्मा के दर्शन होते हैं। सभी निर्मल मन के आत्म दर्शन का सुख समान होता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
118. अप्पा-दंसणि जिणवरहँ जं सुहु होइ अणंतु।
तं सुहु लहइ विराउ जिउ जाणंतउ सिउ संतु।।
अर्थ - अर्हन्देवों के लिए आत्मा के दर्शन में जो अनन्त सुख होता है, उस सुख को राग रहित प्राणी (मुनि) शान्त परम आत्मा को अनुभव करते हुए प्राप्त करता है।
शब्दार्थ - अप्पा-दंसणि- आत्मा के दर्शन में, जिणवरहँ -अर्हन्देवों के लिए, जं - जो, सुहु-सुख, होइ - होता है, अणंतु-अनन्त, तं - उस, सुहु-सुख को, लहइ-प्राप्त करता है, विराउ-राग रहित, -प्राणी, जाणंतउ-अनुभव करता हुआ, सिउ -परमात्मा को, संतु-शान्त।
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