परम आत्मा को देखने का मार्ग
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि अपनी आत्मा में परमआत्मा के दर्शन तभी संभव है जब जीवन के सभी संकल्प-विकल्पों से परे होकर निश्चिन्त हुआ जाये। निश्चिन्त होकर अपने चित्त को परम पद प्राप्त परमआत्मा में स्थापित करने पर ही परम आत्मा के दर्शन होते हैं। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
115. मेल्लिवि सयल अवक्खडी जिय णिच्चिंतउ होइ।।
चित्तु णिवेसहि परमपए देउ णिरंजणु जोइ।।
अर्थ - हे जीव! सभी अपेक्षाओं को छोड़कर निश्चिन्त हो, (फिर) चित्त को परम पद में स्थापित कर निरंजन परम आत्मा को देख।
शब्दार्थ - मेल्लिवि-छोड़कर, सयल-समस्त, अवक्खडी-अपेक्षाओं को, जिय-हे जीव!, णिच्चिंतउ-निश्चिन्त, होइ-हो, चित्तु-चित्त को, णिवेसहि-स्थापित कर, परमपए-परम पद में, देउ-परमात्मा को, णिरंजणु -निरंजन, जोइ-देख।
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