परमात्मा से क्षणिक प्रेम समस्त पापों का नाशक है
आचार्य योगिन्दु कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति पलक झपकने के समय से आधा समय भी परमात्मा से प्रेम कर ले तो उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। आचार्य योगिन्दु के अनुसार परमात्मा से प्रेम करना आसान नहीं है उसके लिए अपने मन को निर्मल बनाना पड़ता है, राग-द्वेष से परे होना पड़ता है, अशुभ व शुभ भावों से परे शुद्ध भाव में स्थित होना पडता है। स्वतः यही स्थिति ही पापों से परे हो जाती है एवं अपनी आत्मा ही परम आत्मा बन जाती है। भोगों के विषम जीवन से हटकर व्यक्ति सरल सम जीवन में स्थित हो जाता है। समभाव में स्थित मन में ही परम आत्मा के दर्शन होते हैं। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा
114. जइ णिविसद्धु वि कु वि करइ परमप्पइ अणुराउ ।
अग्गि-कणी जिम कट्ठ-गिरी डहइ असेसु वि पाउ।।
अर्थ - यदि कोई (मनुष्य) आधे पलक समय के लिए भी परमात्मा से प्रेम करता है (तो) जिस प्रकार अग्नि का कण लकड़ी के ढ़ेर को जला देता है, (उसी प्रकार) (परमात्मा में प्रेम) सम्पूर्ण पाप को ही (नष्ट कर देता है)।
शब्दार्थ - जइ-यदि, णिविसद्धु-आधी पलक समय के लिए, वि-भी, कु-कोई, वि-भी, करइ-करता है, परमप्पइ-परमात्मा में, अणुराउ-प्रेम, अग्गि-कणी- अग्नि का कण, जिम-जिस प्रकार, कट्ठ-गिरी-लकड़ी के पहाड़ को, डहइ-जला देता है, असेसु-समस्त, वि-ही, पाउ-पाप।
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