ज्ञानमय आत्मा ही परमात्मा बनने का मार्ग है
आचार्य योगीन्दु ज्ञानमय आत्मा के विषय में विस्तृतरूप से कथन करने के बाद अन्त में कहते है कि ज्ञानमय आत्मा ही परमात्मा को देखने, जानने और प्राप्त करने का साधन है। दंखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
109. जोइज्जइ ति बंभु परु जाणिज्जइ तिं सोइ।
बंभु मुणेविणु जेण लहु गम्मिज्जइ परलोइ।।
अर्थ - उस (ज्ञानी आत्मा) से (ही) (वह) श्रेष्ठ परमात्मा देखा जाता है, (और) उस (ज्ञानी आत्मा) से ही वह (श्रेष्ठ परमात्मा) जाना जाता है, जिससे परमात्मा को जानकर (उसके द्वारा) शीध्र श्रेष्ठ लोक में जाया जाता है।
शब्दार्थ - जोइज्जइ-देखा जाता है, ति-उसके द्वारा, बंभु-परमात्मा, परु -श्रेष्ठ, जाणिज्जइ-जाना जाता है, तिं-उसके द्वारा, सोइ-वह ही, बंभु-परमात्मा को, मुणेविणु-जानकर, जेण-जिससे, लहु-शीघ्र, गम्मिज्जइ-जाया जाता है, परलोइ-श्रेष्ठ लोक।
बन्धुओं! श्रवणबेलगोला एवं केरल भ्रमण करने के कारण 15 फरवरी तक आगे के लेखन कार्य में अवकाश रहेगा। जय जिनेन्द्र
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