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आत्मा का मूल स्वभाव प्रकाशमान है


Sneh Jain

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आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि वस्तु का स्वभाव ही उसका मूल धर्म है। उस ही क्रम में आत्मा का स्वभाव प्रकाशमान है। जो स्वयं भी प्रकाशित है और दूसरे को भी अपने प्रकाश से प्रकाशित करता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा - 

101.   अप्पु पयासइ अप्पु परु जिम अंबरि रवि-राउ।

      जोइय एत्थु भंति करि एहउ वत्थु- सहाउ।।

अर्थ -आत्मा स्वयं को (तथा) पर को प्रकाशित करता है, जिस प्रकार आकाश में सूर्य का प्रकाश (स्वयं को तथा पर को प्रकाशित करता है) हे योगी! (तू) इसमें सन्देह मत कर,ऐसा ही वस्तु का स्वभाव है।

शब्दार्थ - अप्पु-आत्मा, पयासइ-प्रकाशित करती है, अप्पु-स्वयं को, परु-पर को, जिम-जिस प्रकार, अंबरि -आकाश में, रवि-राउ- सूर्य का प्रकाश, जोइय-हे योगी! एत्थु -इसमें, -मत, भंति - संदेह, करि-कर, एहउ-ऐसा, वत्थु-सहाउ - वस्तु का स्वभाव

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