आत्म स्वभाव में स्थित हुए जीव की विशेषता
आचार्य योगिन्दु कहते हैं कि आत्मस्वभाव में स्थित हुए व्यक्ति की यह विशेषता होती है कि उसको स्वयं में ही समस्त लोक और अलोक दिखायी पड़ता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
100. अप्प-सहावि परिट्ठियह एहउ होइ विसेसु।
दीसइ अप्प-सहावि लहु लोयालोउ असेसु।।
अर्थ - आत्मा के स्वभाव में सम्पूर्णरूप से स्थित हुए (प्राणियों) की ऐसी विशेषता होती है (कि) (उनको) आत्मा के स्वभाव में समस्त लोक और अलोक शीघ्र दिखाई पड़ता है।
शब्दार्थ - अप्प-सहावि- आत्मा के स्वभाव में, परिट्ठियहँ- सम्पूर्णरूप् से स्थित हुए की, एहउ-ऐसी, होइ-होती है, विसेसु-विशेषता, दीसइ-दिखायी पड़ता है, अप्प-सहावि-आत्मा के स्वभाव में, लहु-शीघ्र, लोयालोउ-लोक और अलोक, असेसु-समस्त
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