आत्मा की महत्ता
आचार्य योगिन्दु कहते हैं कि आत्मा के साथ ही सब उपयोगी है, आत्मा के अभाव मे सब निरर्थक है। वे आगे के दोहे में आत्मा की महत्ता को बताते हुए कहते हैं कि आत्मा को छोड़कर न कोई दर्शन है, न ज्ञान है, न, चारित्र है।
94. अण्णु जि दंसणु अत्थि ण वि अण्णु जि अत्थि ण णाणु।
अण्णु जि चरणु ण अत्थि जिय मेल्लिवि अप्पा जाणु।।
अर्थ -हे प्राणी! आत्मा को छोड़कर निश्चय ही (आत्मा) से भिन्न (कोई) दर्शन नहीं है, (आत्मा) से भिन्न निश्चय ही (कोई) ज्ञान नहीं है, (तथा) (आत्मा) से भिन्न निश्चय ही (कोई) चारित्र नहीं है, (ऐसा तू) समझ।
शब्दार्थ - अण्णु-से भिन्न, जि-निश्चय ही, दंसणु -दर्शन, अत्थि-है, ण वि-नहीं, अण्ण्-से भिन्न, जि-निश्चय ही, अत्थि-है, ण-नहीं, णाणु-ज्ञान, अण्णु-से भिन्न, जि-निश्चय ही, चरणु-चारित्र, ण-नहीं, अत्थि-है, जिय-हे प्राणी!, मेल्लिवि-छोड़कर, अप्पा-आत्मा को, जाणु-जानो।
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