आत्मा का मूल स्वभाव संयम, तप, दर्शन और ज्ञान है आचार्य योगीन्दु आगे कहते हैं कि आत्मा का मूल स्वभाव संयम, शील, तप, दर्शन और ज्ञान है। इन मूल स्वभाव की प्राप्ति ही आत्मा की प्राप्ति का साधन है। मूल स्वभाव के नष्ट होने पर विकारी भाव आत्मा की प्राप्ति म
आचार्य योगीन्दु आगे कहते हैं कि आत्मा का मूल स्वभाव संयम, शील, तप, दर्शन और ज्ञान है। इन मूल स्वभाव की प्राप्ति ही आत्मा की प्राप्ति का साधन है। मूल स्वभाव के नष्ट होने पर विकारी भाव आत्मा की प्राप्ति में बाधक हो जाते हैं। देखिये इससे सयम्बन्धित आगे का दोहा -
93. अप्पा संजमु सीलु तउ अप्पा दंसणु णाणु ।
अप्पा सासय- मोक्ख-पउ जाणंतउ अप्पाणु।। 93।।
अर्थ - आत्मा संयम (है), शील (है), तप (है), आत्मा दर्शन (है), ज्ञान (है), आत्मा स्वयं को जानता हुआ शाश्वत सुख का स्थान है।
शब्दार्थ - अप्पा-आत्मा, संजमु-संयम, सीलु-शील, तउ-तप, अप्पा-आत्मा, दंसणु-सत्य तत्त्व पर श्रृद्धा, णाणु-ज्ञान, अप्पा-आत्मा, सासय- मोक्ख-पउ-शाश्वत मोक्ष का स्थान, जाणंतउ-जानता हुआ, अप्पाणु-स्वयं को
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