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व्यक्ति की किसी भी अवस्था का सम्बन्ध उसके कर्मों से है आत्मा से नहीं


Sneh Jain

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आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि आत्मा का जब मूढ स्वभाव नष्ट हो जाता है और आत्मा का ज्ञान गुण विकसित होने लगता है तब व्यक्ति को समझ में आता है कि उसकी लघुता महानता का सम्बन्ध उसकी आत्मा से नहीं बल्कि उसके कर्मों से है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -

 91   अप्पा पंडिउ मुक्खु णवि णवि ईसरु णवि णीसु।

      तरुणउ बूढउ बालु णवि अण्णु वि कम्म-विसेस।। 91।।

अर्थ - आत्मा बुद्धिमान (तथा) मूर्ख नहीं है, धनवान नहीं है, धनरहित (दरिद्र) नहीं है, जवान, बूढा (और) बालक नहीं है, (ये सब) (आत्मा) से भिन्न कर्म के भेद ही हैं।

शब्दार्थ - अप्पा - आत्मा, पंडिउ-विद्वान, मुक्खु-मूर्ख, णवि-नहीं, णवि-नहीं, ईसरु-धनवान, णवि-नहीं, णीसु-धन रहित, तरुणउ-जवान, बूढउ-बूढा, बालु-बालक, णवि-नहीं, अण्णु-से भिन्न, वि-ही, कम्म-विसेस-कर्म के भेद 

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