आत्मा का सम्बन्ध किसी गति से नहीं है
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि आत्मा का जब मूढ स्वभाव नष्ट हो जाता है और आत्मा का ज्ञान गुण विकसित होने लगता है तब व्यक्ति को समझ में आता है कि आत्मा का सम्बन्ध न छोटे से है न बड़े से। आत्मा तो मात्र दर्शन, ज्ञान और चेतना स्वरूप मात्र है। आत्मा के जाग्रत होने पर वह समझता है कि आत्मा का सम्बन्ध न मनुष्य गति से है, न देव गति से, न तिर्यंच गति से और न नरक गति से। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -
90. अप्पा माणुसु देउ ण वि अप्पा तिरिउ ण होइ ।
अप्पा णारउ कहि ँ वि णवि णाणिउ जाणइ जोइ ।।
अर्थ - आत्मा मनुष्य तथा देव भी नहीं है, आत्मा पशु-पक्षी आदि तिर्य´्च नहीं है, आत्मा कभी भी नरक में उत्पन्न हुआ प्राणी नहीं है, ज्ञानी (यह) गम्भीर भाव चिन्तन से जानता है।
शब्दार्थ - अप्पा - आत्मा, माणुसु -मनुष्य, देउ- देव, ण-नहीं, वि -तथा, अप्पा -आत्मा, तिरिउ - पशु, पक्षी आदि तिर्यंच ण -नहीं, होइ - है, अप्पा - आत्मा, णारउ-नरक में उत्पन्न प्राणी, कहि ँवि - कहीं भी, णवि-नहीं, णाणिउ-ज्ञानी, जाणइ-जानता है, जोइ -गंभीर भाव चिन्तन से।
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