आत्मा का सम्बन्ध छोटे- बडे से नहीं है
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि आत्मा का जब मूढ स्वभाव नष्ट हो जाता है और आत्मा का ज्ञान गुण विकसित होने लगता है तब व्यक्ति को समझ में आता है कि आत्मा का सम्बन्ध न छोटे से है न बड़े से । आत्मा तो मात्र दर्शन, ज्ञान और चेतना स्वरूप मात्र है। आत्मा के जाग्रत होने पर वह समझता है कि आत्मा न गुरु है, न शिष्य है, न स्वामी है, न सेवक है, न शूरवीर (और) कायर है, और न श्रेष्ठ (और) नीच है। दिगम्बर जैन सम्प्रदाय के आचार्य योगीन्दु के अनुसार यदि प्रत्येक मनुष्य मात्र इस एक गाथा पर गहराई से विचारकर अपनी आत्मा को जाग्रत करले तो निश्चित रूप से सम्पूर्ण देश समभाव पर स्थित हो सकता है। देश से ऊँच-नीच अर्थात विषमता का अन्त सम्भव है।
89. अप्पा गुरु णवि सिस्सु णवि णवि सामिउ णवि भिच्चु ।
सूरउ कायरु होइ णवि णवि उत्तमु णवि णिच्चु।।
अर्थ - आत्मा गुरु नहीं है, शिष्य नहीं है, स्वामी नहीं है, सेवक नहीं है, शूरवीर (और) कायर नहीं है, श्रेष्ठ (और) नीच नहीं है।
शब्दार्थ - अप्पा-आत्मा, गुरु-गुरु, णवि-नहीं, सिस्सु-शिष्य, णवि-नहीं, णवि-नहीं, सामिउ-स्वामी, णवि-नहीं, भिच्चु-सेवक, सूरउ-शूरवीर, कायरु-डरपोक, होइ-है, णवि-नहीं, णवि-नहीं, उत्तमु-श्रेष्ठ, णवि-नहीं, णिच्चु-नीच
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