आत्मा का किसी भी धर्म सम्प्रदाय से सम्बन्ध नहीं है
आचार्य योगिन्दु कहते हैं कि आत्मा का जब मूढ स्वभाव नष्ट हो जाता है और आत्मा का ज्ञान गुण विकसित होने लगता है तब वह समझता है कि आत्मा का सम्बन्ध ना बौद्ध धर्म से है, न दिगम्बर जैन धर्म से, न श्वेताम्बर से न किसी अन्य धर्म सम्प्रदाय से। उसके लिए आत्मा मात्र एक आत्मा है। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -
88. अप्पा वंदउ खवणु ण वि अप्पा गुरउ ण होइ।
अप्पा लिंगिउ एक्कु ण वि णाणिउ जाणइ जोइ।।
अर्थ -आत्मा वन्दना करनेवाला, (और) तपस्वी जैन मुनि नहीं है, आत्मा धर्माचार्य नहीं है, तथा आत्मा किसी धर्म के वेश को धारण करनेवाला एक साधुु नहीं है, (यह) ज्ञानी गंभीर भाव चिन्तन से जानता है।
शब्दार्थ - अप्पा-आत्मा, वंदउ-वंदन करनेवाला, खवणु-तपस्वी जैन मुनि, ण-नहीं, वि-तथा, अप्पा-आत्मा, गुरउ-धर्माचार्य, ण-नहीं, होइ-है, अप्पा-आत्मा, लिंगिउ-किसी धर्म के वेश को धारण करनेवाला साधु, एक्कु -एक, ण-नहीं, वि-भी, णाणिउ -ज्ञानी, जाणइ-जानता है, जोइ-गंभीर भाव चिंतन से।
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