आत्मा का जाति व लिंग से सम्बन्ध नहीं
आचार्य योगिन्दु ज्ञानी आत्मा का स्वरूप बताते हुए आगे कहते हैं कि ज्ञानी आत्मा, ब्राह्मण, वणिक, क्षत्रिय, क्षुद्र जातियाँ तथा पुरुष, नपुंसक, स्त्री लिंगो का भी आत्मा से कोई सम्बन्ध नहीं मानता है। वह आत्मा को मात्र दर्शन, ज्ञान चेतना स्वरूप मानता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
87. अप्पा बंभणु वइसु ण वि ण वि खत्तिउ ण वि सेसु।
पुरिसु णउंसउ इत्थि ण वि णाणिउ मुणइ असेसु।।
अर्थ - आत्मा ब्राह्मण तथा वणिक नहीं है, क्षत्रिय भी नहीं है और बाकी बचा हुआ (क्षुद्र) भी नहीं है, तथा पुरुष, नपुंसक, स्त्री भी नहीं है, (यह) ज्ञानी निःशेष रूप से जानता है।
शब्दार्थ - अप्पा- आत्मा, बंभणु- ब्राह्मण, वइसु-वणिक, ण-नहीं, वि-तथा, ण-नहीं, वि-भी, खत्तिउ-क्षत्रिय, ण-नहीं, वि-भी, सेसु - बचा हुआ, पुरिसु-पुरुष, णउंसउ-नपुंसक, इत्थि-स्त्री, ण-नहीं, वि-तथा, णाणिउ-ज्ञानी, मुणइ-जानता है, असेसु-निःशेष।
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