जाग्रत आत्मा का स्वरूप
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि जैसे ही आत्मा का मूढ स्वभाव नष्ट होता है वैसे ही आत्मा जाग्रत अवस्था को प्राप्त होने लगती है। जाग्रत अवस्था से पूर्व मूढ अवस्था में उसकी जो क्रियाएँ होती थी वे जाग्रत अवस्था में पूर्ण परिवर्तन के साथ होती हैं। मूढ अवस्था में वह आत्मा को गोरा, काला आदि विभिन्न वर्णोवाला मानता था किन्तु जाग्रत अवस्था प्राप्त कर लेने पर वह गम्भीर भाव चिन्तन से यह समझ जाता है कि आत्मा गोरवर्णवाली, काले रंगवाली, नहीं है, आत्मा लाल नहीं है, आत्मा सूक्ष्म और स्थूल भी नहीं है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
86. अप्पा गोरउ किण्हु ण वि अप्पा रत्तु ण होइ।
अप्पा सुहुमु वि थूलु ण वि णाणिउ जाणइ जोइ।। 86।।
अर्थ - आत्मा गोरवर्णवाली, काले रंगवाली, नहीं है, आत्मा लाल नहीं है, आत्मा सूक्ष्म और स्थूल भी नहीं है, (ऐसा) योगी गम्भीर भाव चिन्तन से जानता है।
शब्दार्थ - अप्पा - आत्मा, गोरउ- गौरवर्णवाली, किण्हु-कालेरंगवाली, णवि- नहीं, अप्पा- आत्मा, रत्त-लाल,ु ण-नहीं, होइ-होती है, अप्पा-आत्मा, सुहुमु-सूक्ष्म, वि-और, थूलु-स्थूल, ण-नहीं, वि-भी, णाणिउ -ज्ञानी, जाणइ-जानता है, जोइ-गंभीर भाव चिन्तन से।
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