मूढता का कारण और निवारण और फल
आचार्य योगिन्दु व्यक्ति की मूढता का कथन करने के बाद कहते हैं कि उसकी इस मूढता का कारण उसका अपना मोह स्वभाव है, और जैसे-जैसे उपयुक्त समय आने पर उसका मोह नष्ट होता है उसकी मूढता नष्ट होती है। उसके बाद ही उसकी सत्य तत्त्व पर श्रद्धा होती है और तब ही आत्मा से उसकी पहचान शुरु होने लगती है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
85 काल लहेविणु जोइया जिमु जिमु मोह गलेइ।
तिमु तिमु दंसणु लहइ जिउ णियमे ँ अप्पु मुणेइ।
अर्थ -हे योगी! समय प्राप्तकर जैसे-जैसे मोह नष्ट होता है, वैसे-वैसे मनुष्य सत्य तत्व पर श्रद्धा (सम्यग्दर्शन) प्राप्त करता है, (और) निश्चय से आत्मा को जानता है।
शब्दार्थ - काल -समय, लहेविणु-प्राप्तकर, जोइया-हे योगी, जिमु जिमु- जैसे जैसे, मोह-मोह, गलेइ-नष्ट होता है, तिमु तिमु- वैसे वैसे, दंसणु -सत्य तत्त्व पर श्रद्धा, लहइ-प्राप्त करता है, जिउ-मनुष्य, णियमे ँ -निश्चय से, अप्पु- आत्मा को, मुणेइ-जानता है।
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