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JainSamaj.World
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मूढ व्यक्ति के अन्य लक्षण


Sneh Jain

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पुनः आचार्य योगिन्दु मूर्छित आत्मा वाले मूढ व्यक्ति का लक्षण बताते हैं कि वह आत्मा को छोड़कर जाति, लिंग, अवस्था तथा अपने सम्प्रदाय को अपना मानता है और उस पर अहंकार करता है, जबकि ये सब उसके ऊपरी आवरण या भेद हैं। आत्मा के अतिरिक्त सभी वस्तुए भिन्न हैं। जाग्रत आत्मा अपनी आत्मा में स्थित हुआ बाकी सब भेदों को आत्मा से भिन्न मानता है। देखिये इससे सम्बन्धित दो दोहे-

81.  हउँ वरु बंभणु वइसु हउँ हउं खत्तिउ हउँँ सेसु।

    पुरिसु णउँसउ इत्थि हउँ मण्णइ मूढु विसेसु।।

अर्थ - मैं (सबमें) श्रेष्ठ ब्राह्मण (हूँ), मैं वणिक (हूँ), मैं क्षत्रिय (हूँ) (तथा)(इनसे) बाकी (क्षुद्र) (हूँ), मैं पुरुष, नपुंसक (और) स्त्री (हूँ), (इस) भेद को मूर्ख मानता है।

शब्दार्थ - हउँ-मैं, वरु-श्रेष्ठ, बंभणु-ब्राह्मण, वइसु-वणिक, हउँ-मैं, हउं -मैं, खत्तिउ -क्षत्रिय, हउँँ-मैं, सेसु-बचा हुआ, पुरिसु-पुरुष, णउँसउ-नपुंसक, इत्थि-स्त्री, हउँ-मैं, मण्णइ-मानता है, मूढु-मूर्ख, विसेसु-प्रभेद को।

 

82.  तरुणउ बूढउ रूयडउ सूरउ पंडिउ दिव्वु।

    खवणउ वंदउ सेवडउ मूढउ मण्णइ सव्वु।। 

अर्थ - मैं जवान (हूँ), बूढा (हूँ), रूपवाला (हूँ) शूरवीर (हूँ), विद्वान (हूँ), अलौकिक (हूँ), जैन तपस्वी (हूँ), वन्दना करनेवाला (हूँ), श्वेताम्बर (हूँ), (इन) सब (भेद) कोे मूर्ख मानता है।

शब्दार्थ - तरुणउ-जवान, बूढउ-बूढा,, रूयडउ-रूपवाला, सूरउ-शूरवीर, पंडिउ-विद्वान, दिव्वु-अलौकिक,     खवणउ-तपस्वी जैन मुनि, वंदउ- वंदना करनेवाला, सेवडउ-श्वेताम्बर, मूढउ-मूर्ख, मण्णइ-मानता है, सव्वु-सबको।

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