Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World
  • entries
    284
  • comments
    3
  • views
    14,324

विपरीत दृष्टि जीव की पहचान


Sneh Jain

489 views

आचार्य योगिन्दु कहते हैं कि जिसकी दृष्टि सम्यक् नहीं होती बल्कि सम्यक् से विपरीत होती है, वह वस्तु के स्वरूप का जैसा वह है, उससे विपरीत रूप में आकलन करता है तथा कर्म से रचित भावों को अपना आत्मस्वरूप समझता है। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -  

79.   जीउ मिच्छत्ते परिणमिउ विवरिउ तच्चु मुणेइ।

     कम्म-विणिम्मिय भावडा ते अप्पाणु भणेइ।। 79।। 

अर्थ - मिथ्यात्व से परिपूर्ण हुआ जीव तत्व (वस्तु स्वरूप) को विपरीत जानता है।( वह)  कर्म से रचित उन भावों को अपना कहता है।

शब्दार्थ - जीउ-जीव, मिच्छत्ते -मिथ्यात्व से, परिणमिउ-परिपूर्ण हुआ, विवरिउ-विपरीत, तच्चु-तत्व को, मुणेइ-जानता है, कम्म-विणिम्मिय-कर्म से विरचित, भावडा-भावों को, ते-उन, अप्पाणु-अपना, भणेइ-कहता है। 

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Guest
Add a comment...

×   Pasted as rich text.   Paste as plain text instead

  Only 75 emoji are allowed.

×   Your link has been automatically embedded.   Display as a link instead

×   Your previous content has been restored.   Clear editor

×   You cannot paste images directly. Upload or insert images from URL.

  • अपना अकाउंट बनाएं : लॉग इन करें

    • कमेंट करने के लिए लोग इन करें 
    • विद्यासागर.गुरु  वेबसाइट पर अकाउंट हैं तो लॉग इन विथ विद्यासागर.गुरु भी कर सकते हैं 
    • फेसबुक से भी लॉग इन किया जा सकता हैं 

     

×
×
  • Create New...