सम्यक् दृष्टि का लक्षण और फल
जीवन का निर्मल होना ही सम्यक् जीवन जीना है। निर्मलतापूर्ण सम्यक् जीवन के लिए व्यक्ति की दृष्टि का निर्मल होना आवश्यक है। निर्मल दृष्टि ही सम्यक् दृष्टि है। आचार्य योगिन्दुु कहते हैं कि आत्मा से आत्मा को जानता हुआ व्यक्ति सम्यक् दृष्टि होता है। वैसे भी यदि हम अनुभव करें तो हम देखेंगे कि सुख- दुख का अनुभव प्रत्येक आत्मा में समानरूप से होता है, और यह बात जो समझ लेता है वह किसी को दुःख नहीं दे सकता। ऐसा व्यक्ति ही जिनेन्द्र द्वारा कथित मार्ग पर चलकर शीघ्र ही कर्मों से मुक्त हो जाता है। देखिये इससे सम्बन्धित अगला दोहा -
76. अप्पिं अप्पु मुणंतु जिउ सम्मादिट्ठि हवेइ।
सम्माइट्ठिउ जीवडउ लहु कम्मइं मुच्चेइ।। 76।।
अर्थ - आत्मा से आत्मा को जानता हुआ प्राणी सम्यग्दृष्टि (सत्य तत्व पर शृद्धा रखनेवाला) होता है। सम्यग्दृष्टि प्राणी शीध्र कर्म से मुक्त किया जाता है।
शब्दार्थ - अप्पिं -आत्मा से, अप्पु - आत्मा को, मुणंतु-जानता हुआ, जिउ-प्राणी, सम्मादिट्ठि-सम्यग्दृष्टि हवेइ-होता है, सम्माइट्ठिउ-सम्यग्दृष्टि, जीवडउ-जीव, लहु-शीघ्र, कम्मइं-कर्म से, मुच्चेइ-मुक्त किया जाता है।
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