आत्मा ही सब कुछ है तथा आत्मा के ध्यान की विधि
आचार्य योगिन्दु कहते है कि हमें दुःखों से मुक्ति पाने हेतु आत्मा का ध्यान करना चाहिए। उसी क्रम में वे कहते हैं कि आत्मा को छोड़कर अन्य सब पराये भाव हैं। उसके बाद आत्मा के ध्यान की विधि बताते हुए कहते हैं कि जो आत्मा आठ कर्मों से बाहर, समस्त दोषों से रहित (तथा) दर्शन, ज्ञान और चारित्रयुक्त है, वही ध्यान करने योग्य है। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -
74. अप्पा मेल्लिवि णाणमउ अण्णु परायउ भाउ ।
सो छंडेविणु जीव तुहुँ भावहि अप्प-सहाउ।।
अर्थ - हे जीव! ज्ञानमय आत्मा को छोडकर अन्य भाव अपने से भिन्न है, (अतः) उसको छोड़कर तू आत्म-स्वभाव का चिन्तन कर।
शब्दार्थ - अप्पा - आत्मा को, मेल्लिवि-छोड़कर, णाणमउ-ज्ञानमय, अण्णु-अन्य, परायउ-अपने से भिन्न, भाउ-भाव, -उसको, छंडेविणु ,छोड़कर जीव-हे जीव, तुहुँ -तू, भावहि-चिन्तन कर, अप्प-सहाउ-आत्म स्वभाव का।
75 अट्ठहँ कम्महँ बाहिरउ सयलहँ दोसहँ चत्तु ।
दंसण-णाण-चरित्तमउ अप्पा भावि णिरुत्तु।। 75।।
अर्थ- आठ कर्मों से बाहर, समस्त दोषों से रहित (तथा) दर्शन, ज्ञान और चारित्रयुक्त स्पष्ट आत्मा का
शब्दार्थ -अट्ठहँ -आठों, कम्महँ -कर्मों से, बाहिरउ-बाहर, सयलहँ -सम्पूर्ण, दोसहँ-दोषों से, चत्त-रहित, दंसण-णाण-चरित्तमउ-दर्शन, ज्ञान और चारित्र युक्त, अप्पा-आत्मा का, भावि-गुणाधान कर, णिरुत्त-स्पष्ट।
जय जिनेन्द्र, आगे के ब्लाॅग नये वर्ष से आरम्भ होंगे क्योंकि मैं मुनिवर प्रमाणसागरजी महाराजश्री के सानिध्य में होनेवाली पदयात्रा में 23 दिसम्बर से 30 दिसम्बर तक श्रीमहावीरजी जा रही हूँ।
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