आत्म चिंतन का सुगम मार्ग
आचार्य योगीन्दु देह से लगे जरा और मरण के भय से मुक्त करने हेतु आत्मा का चिंतन करने की बात करते हैं। फिर आत्मा का चिंतन कैसे करे यह बताते हैं। वे कहते हैं कि हे प्राणी! कर्म और कर्म से उत्पन्न भाव तथा सभी पुद्गल द्रव्य आत्मा से भिन्न है। तू इस प्रकार विचारकरके और आत्मा का सुगमता से चिंतन करके अपने दुःखों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।
73. कम्महँ केरा भावडा अण्णु अचेयणु दव्वु ।
जीव-सहावहँ भिण्णु जिय णियमिं बुज्झहि सव्वु ।।
अर्थ -हे जीव! कर्मों के भाव (तथा) अन्य अचेतन द्रव्य, जीव के स्वभाव से भिन्न हैं, (इन) सबको (तू) नियम से समझ।
शब्दार्थ - कम्महँ - कर्मों के, केरा- सम्बन्धवाचक परसर्ग, भावडा-भाव, अण्णु-अन्य, अचेयणु-अचेतन, दव्वु-द्रव्य, जीव-सहावहँ-जीवों के स्वभाव से, भिण्णु-भिन्न, जिय-हे जीव!, णियमिं - नियम से, बुज्झहि-समझ, सव्वु-सबको।
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