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१०५. सम्यग्दर्शन पर दृढ़ रहने वाले की कथा


admin

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सब प्रकार के दोषों रहित जिन भगवान् को नमस्कार कर सम्यग्दर्शन को खूब दृढ़ता के साथ पालन करने वाले जिनदास सेठ की पवित्र कथा लिखी जाती है ॥१॥

प्राचीन काल से प्रसिद्ध पाटलिपुत्र (पटना) में जिनदास नाम का एक प्रसिद्ध और जिनभक्त सेठ हो चुका है। जिनदास सेठ की स्त्री का नाम जिनदासी था । जिनदास, जिसकी कि यह कथा है, इसी का पुत्र था। अपनी माता के अनुसार जिनदास भी ईश्वर प्रेमी, पवित्र हृदयी और अनेक गुणों का धारक था ॥ २-३॥

एक बार जिनदास सुवर्ण द्वीप से धन कमाकर अपने नगर की ओर आ रहा था। किसी काल नाम के देव की जिनदास के साथ कोई पूर्व जन्म की शत्रुता होगी इसलिए वह देव इसे मारना चाहता होगा। यही कारण था कि उसने कोई सौ योजन चौड़े जहाज पर बैठे-बैठे ही जिनदास से कहा- जिनदास, यदि तू यह कह दे कि जिनेन्द्र भगवान् कोई चीज नहीं, जैनधर्म कोई चीज नहीं, तो तुझे मैं जीता छोड़ सकता हूँ, नहीं तो मार डालूँगा । उस देव का वह डराना सुन जिनदास वगैरह ने हाथ जोड़कर श्रीमहावीर भगवान् को बड़ी भक्ति से नमस्कार किया और निडर होकर वे उससे बोले-पापी, यह हम कभी नहीं कह सकते कि जिनभगवान् और उनका धर्म कोई चीज नहीं; बल्कि हम यह दृढ़ता के साथ कहते हैं कि केवलज्ञान द्वारा सूर्य से अधिक तेजस्वी जिनेन्द्र भगवान् और संसार द्वारा पूजा जाने वाला उनका मत सबसे श्रेष्ठ है। उनकी समानता करने वाला कोई देव और कोई धर्म संसार में है ही नहीं । इतना कह कर ही जिनदास ने सबके सामने ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की कथा, जो कि पहले कहानी संख्या १८ पर लिखी जा चुकी है, कह सुनाई उस कथा को सुनकर सबका विश्वास और भी दृढ़ हो गया। इन धर्मात्माओं पर इस विपत्ति के आने से उत्तरकुरु में रहने वाले अनाव्रत नाम के यक्ष का आसन कंपा। उसने उसी समय आकर क्रोध से कालदेव के सिर पर चक्र की बड़ी जोर की मार जमाई और उसे उठाकर बड़वानल में डाल दिया ॥४-१२॥

जहाज के लोगों की इस अचल भक्ति से लक्ष्मी देवी बड़ी प्रसन्न हुई उसने आकर इन धर्मात्माओं का बड़ा आदर-सत्कार किया और इनके लिए भक्ति से अर्घ चढ़ाया। सच है, जो भव्यजन सम्यग्दर्शन का पालन करते हैं, संसार में उनका आदर, मान कौन नहीं करता । इसके बाद जिनदास वगैरह सब लोग कुशलता से अपने घर आ गए। भक्ति से उत्पन्न हुए पुण्य ने इनकी सहायता की। एक दिन मौका पाकर जिनदास ने अवधिज्ञानी मुनि से कालदेव ने ऐसा क्यों किया इस बाबत का खुलासा पूछा। मुनिराज ने इस बैर का सब कारण जिनदास से कहा। जिनदास को सुनकर सन्तोष हुआ ॥१३-१६॥

जो बुद्धिमान् हैं, उन्हें उचित है या उनका कर्तव्य है कि वे परम सुख के लिए संसार का हित करने वाले और मोक्ष के कारण पवित्र सम्यग्दर्शन को ग्रहण करें। इसे छोड़कर उन्हें और बातों के लिए कष्ट उठाना उचित नहीं, कारण वे मोक्ष के कारण नहीं है ॥१७॥

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