शरीर के प्रति अभय विषयक कथन
इस संसार के प्रत्येक प्राणी को जितना दुःख है वह शरीर से सम्बन्धित ही है। जिस समय व्यक्ति का मरण होता है उस समय आत्मा के अभाव में देह की समस्त क्रियाओं का निरोध होने से व्यक्ति के देह से सम्बन्धित सभी दुःख समाप्त हो जाते हैं। इसीलिए आचार्य योगिन्दु शरीर से अधिक आत्मा के महत्व का कथन कर प्रत्येक जीव को शरीर के प्रति अभय प्रदान करते हैं। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -
72. छिज्जउ भिज्जउ जाउ खउ जोइय एहु सरीरु ।
अप्पा भावहि णिम्मलउ जिं पावहि भव-तीरु ।।
अर्थ - हे जीव! देह के बुढापा व मरण को देखकर भय मत कर। जो अजर-अमर परम आत्मा है, वह ही आत्मा है, (ऐसा) (तू) समझ।
शब्दार्थ - छिज्जउ-छिदे, भिज्जउ-भिदे, जाउ-प्राप्त हो, खउ-नाश को, जोइय-हे योगी!, एहु-यह, सरीरु-शरीर, अप्पा-आत्मा का, भावहि-चिंतन कर, णिम्मलउ-निर्मल, जिं-जिससे, पावहि-प्राप्त करे, भव-तीरु-संसार के पार को
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.