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    admin

        शान्तिपथ-प्रदर्शन का प्रथम संस्‍करण पढ़ने के पश्‍चात् पाठकों के सैकड़ों प्रशंसा पत्र मेरे पास आये उनमें से इस ग्रन्‍थ के विषय में कुछ महत्‍वपूर्ण सम्‍मतियां ही यहाँ पर प्रकाशित कर रहा हूँ ।

                                              रूपचन्‍द्र गार्गीय जैन

    १.       निर्विकल्‍प ध्‍यानके अभ्‍यासी, आदर्शत्‍यागी ९२ वर्षीय १०५ क्षु० विमल सागरजी शोलापुर-६.११.६१

       शान्तिपथ-प्रदर्शन नाम का ग्रन्‍थ मैंने देखा, आधुनिक ढंग पर सरल भाषा में लिखा हुआ ग्रन्‍थ बहुत अच्‍छा है । सामान्‍य जनता में इसका प्रचार होना संभव है । श्रीमान् ब्र० जिनेन्‍द्र कुमार के शान्ति पथका पुरूषार्थ लेख बहुत अच्‍छा है । ब्रह्मचारीजी सम्‍यक् ज्ञानी हैं, अच्‍छे लेखक हैं, और अच्‍छे व्‍याख्‍यान-पटु भी हैं । उनको मेरा आशीर्वाद । .......२८.१.६३ के पत्र में लिखते हैं- ‘‘बाल ब्रह्मचारी रहकर क्षुल्‍लक दीक्षा ली इससे बड़ा सन्‍तोष है । ख्‍याति पूजा आदिके प्‍यासे नहीं हैं । मैंने बहुतसे क्षुल्‍लक व्रतीदेखे मगर ऐसे नहीं देखे ।’’

    २.       १०५ क्षु० पद्मसागरजी दक्षिण प्रान्‍त -

    ब्र० जिनेन्‍द्रजीने ग्रन्‍थ अच्‍छे ढंगसे लिखा है, उन्‍होंने अपने उद्गार बहुत अच्‍छी तरह प्रकट किये हैं । सचमुच यह ग्रन्‍थ विश्‍वव्‍यापी होना चाहिये । जैसा ग्रन्‍थका नाम है वैसा ही उसका भाव है । मुझे तो स्‍वाध्‍याय करनेसे अति आह्लाद प्रगट हुआ है ।

    ३.       १०५ क्षु० चिदानन्‍दजी-६.१.६३

    आपने शान्तिपथ-प्रदर्शन का प्रकाशन कराकर समाज का बहुत ही उपकार किया है । वर्तमान में उसका ही स्‍वाध्‍याय कर रहा हूँ । श्री १०५ क्षु० जिनेन्‍द्र कुमारजीने यह ग्रन्‍थ बहुत अनुभव-पूर्ण आधुनिक सरल भाषा में लिखा है । गृहस्‍थ धर्मका पूर्णरीतिसे दिग्‍दर्शन कराया है और समझाया है कि अपना कल्‍याण किस प्रकार हो सकता है । इस ग्रन्‍थको अधिकसे अधिक संख्‍यामें छपाकर इसका घर-घर में प्रचार होना चाहिये ।

    ४.       ब्र० श्री छोटेलालजी वर्णी अधिष्‍ठाता श्री शान्तिनिकेतन बावनगजाजी बड़वानी-१८. ८. ६१

    सौभाग्‍यसे शान्तिपथ-प्रदर्शन देखनेको मिला । पुस्‍तककी लेखनशैली व भाषा बिल्‍कुल समयोपयोगी है । वर्तमान पाठकों और अध्‍ययनार्थियोंको तत्‍वावधान करनेमें बड़ी ही सरल है । नि:सन्‍देह श्री ब्र० जिनेन्‍द्रजीने इसे लिखकर बड़ी भारी कमीको पूरा किया है ।

    ५.       श्री ब्र० बाबूलाल अधिष्‍ठाता दि० जैन उदासीन आश्रम इन्‍दौर-

    मुझे शान्तिपथ-प्रदर्शनग्रन्‍थके स्‍वाध्‍यायका अवसर मिला । इतना रोचक लगा कि कई बार पढ़ा । जो रसास्‍वाद आया उसका वर्णन लेखनीसे नहीं कर सकता । इन्‍दौरमें जिन उच्‍च शिक्षा-प्राप्‍त लोगोंने इसे पढ़ा अथवा ब्र० जीके प्रवचन सुने वे आश्‍चर्य चकित हो गये और अन्तरंग से उद्गार निकले कि ‘मानव के लिये शान्ति-प्रदायक धर्मके स्‍वरूप व कर्तव्‍यका ऐसा सुगम  वर्णन हमने आज तक पढ़ा न सुना ।’ प्राचीन ऋषियों द्वारा लिखित सिद्धान्‍त-ग्रन्‍थोंमें श्रुतज्ञानका महत्‍वपूर्ण अटूट भण्‍डार भरा है, परन्‍तु उसकी भाषा व प्रतिपादन शैली इतनी सुगम व आकर्षक नहीं है जो आज का जनसाधारण उससे लाभ उठा सके । बातकी पूर्ति सही अर्थमें इस ग्रन्‍थ द्वारा हुई है, जिसकी भाषा व शैली अत्‍यन्‍त सुगम व सरल है । एक बार पढ़ना प्रारम्‍भ करके छोड़नेको जी नहीं चाहता था जिसके पढ़ने मात्र से शान्ति की प्राप्ति होती है, तो उसे जीवन में उतारने से क्‍यों न होगी ? मैं लेखक का परम उपकार मानता हुआ कामना करता हूँ कि मानस-मानस के हृदय-मन्दिरमें शान्ति हेतु शान्तिपथ-प्रदर्शन बसे ।

    ६. श्री गोकुलचन्‍द्र गंगवाल उदासीन आश्रम बूँदी-१४. ७. ६१

    जिस सरल शान्तिके उपायकी खोजमें था वास्‍तवमें वह विवरण शान्तिपथ-ग्रन्‍थमें पाया ।

    ७. डॉ० कामता प्रसाद जैन प्रमुख संचालक विश्‍व जैन मिशन, अलीगंज-

     ‘शान्तिपथ प्रदर्शन’ बाल ब्र० (अब क्षु० निर्ग्रन्‍थ) श्री जिनेन्‍द्र कुमारजीके प्रवचनोंका संग्रह है । कोई भी वस्‍तु ज्ञानमें यद्यपि एक है, परन्‍तु उसका विवेचन करने की शैलियां अनेक हैं । जेनागमकी भाषा में इसे नय कहा जाता है । क्षु० जी की अपनी निराली शैली है, अपनी बात अपनी शैलीमें विश्‍लेषणात्‍मक ढंग से कहते हैं, रोचक भी बनाते हैं जिससे कि वह सर्व साधारण जनताके गले उतर जावे । अत: उनके प्रवचन का मूल्‍यांकन उनकी कथन शैली और विचाराधीन नयके अनुकूल ही ठीक-ठीक किया जा सकता है । दार्शनिक क्षेत्र में विषमता तब ही उत्‍पन्‍न होती है जब कि विचारक दूसरेके मत अथवा कृतिको अपने दृष्टिकोण से देखता है और विपक्षी के मत और दृष्टिकोण को नजर-अन्‍दाज कर देता है । जैन विद्वानोंमें भी कुछ इसी प्रकारका पक्ष-मोह जड़ पकड़ता जा रहा है । वे सोचें कि इससे अनेकान्‍त धर्मकी सिद्धि किस प्रकार होगी ? संसार में सब कुछ अशुद्ध ही अशुद्ध है, न जीव शुद्ध है न पुद्गल । इसका अर्थ यह कि सब कुछ पर्यायाधीन है । परन्‍तु इसके कारण ही शुद्धरूप अथवा वस्‍तुस्‍वरूप—द्रव्‍यका यथार्थज्ञान सम्‍भव है । जैसे अन्‍धकारके होने पर ही प्रकाश का परिज्ञान होता है, वैसे ही अशुद्धि है तभी शुद्धिका बोध होता है, अज्ञान है तभी ज्ञान दीखता है । क्षु० जी की शैली में यह  विशेषता है कि वे बाहर से अन्‍दर की ओर चले हैं, क्‍योंकि सारा संसार बहिर्दृष्‍टा है और बहिर्जगत में उलझा हुआ है । क्षु० जी बाहरी स्थितियों के खरेखोटेका मूल्‍यांकन करते हुये अन्‍तर की ओर बढ़ते हैं । इसीलिये उन्‍होंने सैद्धांतिक परिभाषाओंको नये रंग ढंगमें ला रक्‍खा है, जो बिल्‍कुल स्‍वाभाविक है । उनके प्रवचनोंमें ज्ञानका चमत्‍कार उत्‍तरोत्‍तर बढ़ता चले, इसीमें हम सबका कल्‍याण है ।

    ८. वर्तमान में आर्य-गुरूकुल भैंसवाल (रोहतक) के प्रिंसिपल, वेदों और उपनिषदोंके मर्मज्ञ, प्रकाण्‍ड विद्वान् पं० विद्यानिधि शास्‍त्री, व्‍याकरणाचार्य साहित्‍याचार्य, साधू आश्रम होशियारपुर-२४. ४. ६१

          मैं ब्र० जिनेन्‍द्र जी यतिवरका प्रोक्‍त अति गम्‍भीर परन्‍तु सरल भाषामें वर्णित जैनागम प्रतिपादित शान्तिपथ-प्रदर्शनका अध्‍ययन मनन करके कृतार्थ हो रहा हूँ । ग्रन्‍थ क्‍या है सचमुच एक अमूल्‍य चिन्‍तामणि है जिसकी प्राप्ति होनेपर सब कामनाओंके अभावरूप शान्तिपथका दर्शन होता है । प्रत्‍येक प्रकरण को सुगमतासे समझाते हुए अत्‍यन्‍त नम्र तथा अहंकार रहित अपनेको तुच्‍छातितुच्‍छ मानकर अत्‍युज्‍जवल निर्मल आत्‍मतत्‍वका दर्शन कराया है । आस्‍त्रव बन्‍ध का प्रकरण तो इतना हृदय-ग्राही है जिसे मैं बार बार पढ़ता नहीं थकता । शुभ क्रियाओंसे भी हमारा जीवन अपराधमय है यह एक अद्भुत आत्‍मशोधनका मंत्र बताया है । ये शब्‍द स्‍मरण करने योग्‍य हैं – ‘शुभ क्रियाओंको करनेके लिए कहा जाय तो वे सुख देनेवाली हैं ऐसा मानकर उनको ही हितरूप समझने लगता है, अभिप्रायको बदलनेके लिए कहा जाय तो उन क्रियाओंको ही छोड़नेके लिए तैयार हो जाता है । दोनों प्रकार मुश्किल है, किस प्रकार समझायें । ऐसे कहें तो भी नीचेकी ओर जाता है और वैसे कहें तो भी नीचेकी ओर ही जाता है । नीचेकी ओर जाने को नहीं कहा जा रहा है भगवन् ! ऊपर उठनेको कहा जा रहा है । कमाल कर दिया है । मैं तो लट्टू हो रहा हूँ, जब उनका जीवन भी वैसा देखता हूँ । हे प्रभु ! कृपा करो, जिनेन्‍द्र जी शतवर्ष-जीवी हों ।

    (९) श्री हीराचन्‍द्र वोहरा B. A. LL. B कलकत्‍ता-२८. ६. ६१

          शान्तिपथ-प्रदर्शन पुस्‍तक पढ़कर हृदय अत्‍यधिक प्रभावित हुआ । बहुत सुन्‍दर ढंगसे लिखी गयी है । ऐसा लगता है कि मोक्षमार्ग प्रकाशक (पं० टोडरमलजी रचित) के बाद इस प्रकार की यह रचना अपने ढंगकी अद्वीतीय है । ऐसी सुन्‍दरतम पुस्‍तकका बड़ा व्‍यापक प्रभाव हो सकता है । प्रत्‍येक धर्म तथा सम्‍प्रदायके व्‍यक्तिके लिए पठनीयसामग्रीका संकलन श्री पूज्‍य ब्र० जी की अपूर्व देन है । वे चिरंजीवी हों । इस पुस्‍तककी सराहनाके पत्र मेरे पास अजमेरक कई मित्रोंसे आये हैं ।

          (१०) डॉ० कस्‍तूरचन्‍द्र जैन एम. ए रिसर्च स्‍कॉलर जयपुर-४. ४. ६१

          शान्तिपथ-प्रदर्शन पुस्‍तक मिली, हार्दिक धन्‍यवाद । पुस्‍तक बहुत सुन्‍दर है एवं आध्‍यात्मिक रससे ओतप्रोत है । ब्र० जी ने अपने हृदयके उद्गारोंको पाठकोंके समक्ष उपस्थित किया है, जिनसे आत्मिक शान्तिका अनुभव होता है । सरल एवं सरस भाषासे पुस्‍तक की उपयोगितामें और भी वृद्धि हुई है । पानीपतकी मिशन शाखाने इसे प्रकाशि‍त करके प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय कार्य किया है । 

    (११) श्रीमान दानवीर जैन रत्‍न सेठ हीरालाल जैन इन्‍दौर –

          मैंने श्री शान्तिपथ-प्रदर्शन ग्रन्‍थका आद्योपान्‍त अध्‍ययन किया है । यह ग्रन्‍थ वास्‍तवमें यथा-नाम तथा-गुण है । भाषा सरल मधुर एवं आकर्षक है । अशान्‍तसे अशान्‍त मानव भी कहींसे कोई भी प्रकरण पढ़ना प्रारम्‍भ करते ही शान्तिका अनुभव करने लगता है । गहनसे गहन बातको सरलतासे कहा गया है । वर्तमानके शिक्षित ग्रेजुएटोंको स्‍वाध्‍यायकी रूचि इससे होती है । जैनेतर समाजके लिए भी इसमें अध्‍ययन एवं मननके लिए उत्‍कृष्‍ट सामग्री है । यह ग्रन्‍थ साम्‍प्रदायिकतासे परे मात्र धर्मको ही सम्‍यक् रूपसे निरूपण करनेवाला है, जो कि आज के समयकी परमावश्‍यकता है । लेखककी विशाल दृष्टि, गहन अध्‍ययन एवं अनुभव का इसमें पूरा-पूरा आभास मिलता है । सांसारिक दु:खोंसे त्रस्‍त मानवको यह ग्रन्‍थ श्रेष्‍ठ पथप्रदर्शक एवं परम शान्तिका दाता है । वास्‍तवमें संतोंकी वाणी स्‍व-परोपकारी होती ही है जो कि मानवको शान्तिकी ओर आकृष्‍ट कर लेती है । इसीलिए शान्ति पानेके इच्‍छुक  सज्‍जन इस ग्रन्‍थका मनन कर लाभ प्राप्‍त करते रहें, यही कामना है । 

    (१२) श्रीमान टीकमचन्‍द जैन मालिक फर्म श्री घीसालाल जतनलाल  बैंकर्स नसीरावाद-२१. २. ६३

          भौतिक बाह्याडंबरोंकी चकाचौंध और इस युग-विशेषकी अर्थोपार्जनकी विभीषिकाने जब इस नश्‍वर संसारके मानव प्राणीकी स्‍व परकी आध्‍यात्मिक चिन्‍तन शक्तिपर वज्रपात कर चैतन्‍यस्‍वरूप ज्ञाता दृष्‍टा, चिदानन्‍द चिद्स्‍वरूप आनन्‍दघन आत्‍माको अज्ञान आवरणसे आच्‍छादित कर दिया, तब ऐसे दुर्दम समयमें शान्तिपथ के पथिक बननेमें निराशा झलकती थी । परन्‍तु आशाकी अलौकिक एवं विमल किरण उदित हुई कि हम सब मुमुक्षुओंको सौभाग्‍यसे यह ग्रन्‍थराज जीवनके उपहार स्‍वरूप उपलब्‍ध हुआ ।

    यह कहनेमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि ‘शान्तिपथ-प्रदर्शन’ ग्रन्‍थराज संजीवनीने हम अल्‍पज्ञोंको पुनर्जीवित ही नहीं किया है वरन् अमृतपान कराया है । इसके लिए हम सब शान्ति के उपासक, वन्दनीय पूज्‍य श्री १०५ क्षु० जिनेन्‍द्र कुमार वर्णीजीके अत्‍यधिक आभारी हैं कि जिनकी कुशाग्र एवं विमल बुद्धि के फल-स्‍वरूप, तात्विक विवेचना इतनी वैज्ञानिक सरल भाषामें अनुपम उदाहरणोंके  साथ हो सकी है कि पाठकोंके लिए हृदयस्‍पर्शी होकर नित्‍य स्‍वाध्‍यायकी वस्‍तु हो गई है । इसी कारण यह मूलमें भूलकी वास्‍तविकताको बतलानेवाला यथावत् ग्रन्‍थ किसी एक ही समुदाय विशेषका न  रहकर जाति-पाँति और वर्ण-भेदकी संकीर्णता- को छोड़कर इस युग-विशेषका जन-मानस ग्रन्‍थ बन गया है जो इस जैन-समाजका गौरव है । अन्‍तमें यह अनुमोदन करता हुआ कि –

                      ‘‘परम शान्ति दीजे हम सबको

                                        पढ़ें जिन्‍हें पुनि चार संघ को’’

    १३. उगमरजा मोहनोत, मुंसिफ मैजिसट्रेट, प्रथम श्रेणी नसीराबाद (राज०) –

          शान्तिपथ-प्रदर्शन पढ़कर मेरी आत्‍माको अत्‍यन्‍त शान्ति प्राप्‍त हुई । इसमें कही हुई बातें आत्‍माकी गहराईसे निकली हुई अनुभवकी बातें हैं । जो भाव व्‍यक्‍त किया अव्‍यक्‍त रूपसे मेरे अन्‍तरंगमें जोश मार रहे थे, लेकिन शास्‍त्र-ज्ञानसे अ‍परिचित होनेके कारण जिन्‍हें प्रगट करनेका साहस नहीं होता था, उन्‍हें डंकेकी चोट इस पुस्‍तकमें देखकर आत्‍माको बहुत सन्‍तोष हुआ । इसके लिए मैं लेखकका बहुत आभार मानता हूँ । इसके पढ़नेके बाद समयसार, प्रवचनसार, नियमसार इत्‍यादि अमूल्‍य ग्रन्‍थरत्‍न आसानीसे समझमें आ जाते हैं । मुमुक्षु बन्‍धुओेंके के लिए यह ग्रन्‍थ अत्‍यन्‍त उपकारी सिद्ध होगा, इसमें मुझे सन्‍देह नहीं मालूम पड़ता ।

    १४. पं० ज्ञानचन्‍द्र जैन ‘स्‍वतन्‍त्र’ सम्‍पादक और व्‍यवस्‍थापक ‘जैनि‍मत्र’ सूरज-३१.७.६१

          ‘शान्तिपथ-प्रदर्शन’ ग्रन्‍थ ऐसे मर्मज्ञ विद्वान और अखण्‍ड ब्रह्मचारी महानुभाव द्वारा लिखा गया है जो सचमुचमें शान्ति-पथपर चल रहा है । फिर इस ग्रन्‍थ द्वारा मानव समाजको शान्तिका मार्ग न मिले ऐसा हो ही नहीं सकता और न माना जा सकता है । ग्रन्‍थकी यही विशेषता महानता और लोकप्रियता है कि न कुछ चन्‍द महीनोंमें ही ग्रन्‍थ हाथोंहाथ उठ गया है । अब इसके दूसरे संस्‍करणकी  प्रतीक्षा की जा रही है । मैं इस ग्रन्‍थका एकबार अक्षरश: स्‍वाध्‍याय कर चुका हूँ, फिर भी यही बलवती भावना हो रही है कि पुन: एकबार पढूं । जिस साहित्‍यके पढ़नेमें मन भीगा रहे और दोबारा पढ़नेकी इच्‍छा हो और नवीनता मिले वही सत्‍साहित्‍य है । इससे अच्‍छी परिभषा सत्साहित्‍यकी और कोई नहीं हो सकती । ग्रन्‍थके रचयिता महानु-भावको अत्‍यन्‍त शान्ति सुखकी प्राप्ति हो ।

    १५. पं० उग्रसेन M. A. LL. B.  रोहतक-३१.१२.६२

          पूज्‍य बाल ब्र० १०५ क्षु० जिनेन्‍द्र कुमारजी द्वारा रचित शान्ति पथ-प्रदर्शन ग्रन्‍थको पढ़ा । उनका यह कार्य अत्‍यन्‍त प्रशंसनीय है । इस ग्रन्‍थमें जैन धर्मका दिग्‍दर्शन विद्वान् लेखक ने बड़ी ही सरल तथा आकर्षक भाषामें वैज्ञानिक ढंगसे कराया है । जैन धर्मका परिचय प्राप्‍त करनेके इच्‍छुक जैन तथा अजैन सभी बन्‍धु इसको पढ़कर लाभ उठायेंगे । ग्रन्‍थ बड़ा उपयोगी है, जैन नवयुवकोंमें इस ग्रन्‍थका प्रचार खूब होना चाहिए ताकि वे इसे पढ़कर अपने धर्मके सम्‍बन्‍धमें कुछ बोध प्राप्‍त कर सकें । परिषद् परीक्षा बोर्डकी उच्‍च कक्षाओंके धर्म शिक्षा कोर्समें यदि इसे रख लें तो अच्‍छा होगा ।

    १६. जैन समाज के प्रसिद्ध कवि धन्‍यकुमार जैन ‘सुधेश’ – २७-३.६१

          शान्तिपथ-प्रदर्शन ग्रन्‍थकी उपयोगिता एवं महत्‍तासे मैं प्रभावित हुआ हूँ । श्री जिनेन्‍द्रजी स्‍वयं शान्तिपक्षके सफल-पथिक हैं । अत: उनकी इस रचनामें सर्वत्र अनुभूतिके दर्शन होते हैं । उनके द्वारा प्रदर्शित शान्ति-पथपर चलकर संसार शान्ति प्राप्‍त कर सकता है, इसमें सन्‍देह नहीं । उनका यह ग्रन्‍थ वास्‍तवमें शान्ति-पथके पथिकोंके लिए ज्‍योति-स्‍तम्‍भका कार्य करेगा । अत: श्री ब्र० जिनेन्‍द्रजीका यह प्रशस्‍त प्रयास प्रत्‍येक मानव द्वारा अभिनन्‍दनीय है । 

    १७. श्री आदीश्‍वर प्रसाद जैन एम. ए., सेक्रेटरी जैन मित्र मण्‍डल, देहली-

          शान्ति पथ-प्रदर्शन ग्रन्‍थको सभी रूचि पूर्वक पढ़ रहे हैं । हमें यह बहुत ही उपयोगी व शिक्षाप्रद प्रतीत हुआ है । अन्‍य ग्रन्‍थोंके पढ़नेमें कभी इतनी रूचि और आनन्‍द नहीं आया । लेखन शैली बहुत ही आधुनिक है ।

    १८. श्री अयोध्‍याप्रसाद गोयलीय डाल्मियानगर-

          ब्र० जिनेन्‍द्रजीने अध्‍यात्‍म सागरमें बहुत गहरी डुबकी लगाकर मूल्‍यवान् रत्‍न निकाले हैं ।

    १९. श्री मनोहर लाल जैन M. A. श्री महावीरजी-१७-७-६१

          ‘शान्तिपथ-प्रदर्शन’ जैसे वैज्ञानिक एवं आधुनिक शैलीवाले ग्रन्‍थके प्रकाशनकेलिए हार्दिक बधाई। प्राचीन शैलीवाले ग्रनथोंके पढ़नेमें अभिरूचि न रखनेवाले युवकोंके लिए इस प्रकारकी शैली जहाँ आकर्षणका कार्य करती है वहाँ धार्मिकताके अंकुर उत्‍पन्‍न करनेमें भी सहायक बनती है ।

    २०. श्रीनिहाललचन्‍द पाण्‍डया, सेल्‍स टैक्‍स इन्‍सपेक्‍टर टौंक –

          शान्तिपथ-प्रदर्शन ग्रन्‍थ बहुत ही रहस्‍यमय प्रतीत हुआ । यहाँकी जैन समाज उसे बहुत ही रूचि पूर्वक पढ़ रही है ।

    (२१) कु० विद्युल्‍लता शाह बी० ए० बी० टी० प्रमुख दि० जैन श्राविकाश्रम विद्यालय शोलापुर -१२. २. ६२

          शान्तिपथ-प्रदर्शन पुस्‍तक बहुत पसन्‍द आयी । आश्रमकी बाइयां इसे बहुत रूचि पूर्वक पढ़ रही हैं । मैं इसका मराठीमें अनुवाद करना चाहती हूँ । इस विषयमें ब्र० जिनेन्‍द्रजी की अनुमति तथा आशीर्वाद भेजनेकी कृपा करें ।

    (२२) श्री पूरनचन्‍द जैन, मु० गढ़ाकोटा (सागर) -२. ४. ६१

          शान्तिपथ-प्रदर्शन ग्रन्‍थ य‍था- नाम तथा-गुणको चरितार्थ करता है । जिस मनोवैज्ञानिक ढंगसे सरल रोचक शैलीमें ग्रन्‍थकारने विषयोंको रखा है वह अतीव आकर्षक व प्रभावोत्‍पादक है । कोई भी प्रवचन शुरू करनेपर छोड़नेको जी नहीं चाहता । पूरे ग्रन्‍थमें किसी भी आचार्यके मूल शब्‍दोंको न रखकर किसी विषयका अपनी शैलीसे विवेचन करना अतीव परिश्रम व अनुभव का कार्य है व मौलिक सूझ-बूझ है । भोजन-शुद्धिकी सार्थकता का प्रतिपादन रूढ़िके ढंगपर न करके वैज्ञानिक ढंगसे किया है जो प्रभावशाली है । श्री वीरप्रभुसे हार्दिक अभिलाषा है कि इस ग्रन्‍थका प्रचार हो और लेखकको इस शैलीके नये-नये ग्रन्‍थ रचनेका उत्‍साह द्विगुणित हो ।

    (२३) दि० जैन स्‍वाध्‍याय मण्‍डल दमोह-

          सौभाग्‍यसे शान्तिपथ-प्रदर्शन ग्रन्‍थका स्‍वाध्‍याय कर शान्ति-प्रेमियोंने जो शान्तिका अनुभव किया है वह अवर्णनीय है, अतएव आप जयवन्‍त व प्रकाशवन्‍त रहें । गुलाबचन्‍द, गुलजारीलाल, भँवरलाल आदि-

    (२४) श्री प्रकाश ‘हितैषी’ शास्‍त्री सम्‍पादक सन्‍मति सन्‍देश-

          मैंने शान्तिपथ-प्रदर्शन ग्रन्‍थ आद्योपान्‍त पढ़ा । इसमें आत्‍म-कल्‍याणमें प्रवृति करानेके लिए अनुभवपूर्ण एवं शास्‍त्र-सम्‍मत विचारधारा देखनेको मिली । श्री पूज्‍य क्षु० जिनेन्‍द्रजी वर्णीने बड़े सरल एवं वैज्ञानिक ढंगसे आर्ष सिद्धान्‍तोंको अनुभवपूर्ण भाषामें प्रतिपादन कर समाज का महान् उपकार किया है ।

          २५. स्‍वामी गीतानन्‍द जी, गीता भवन पानीपत-   

          मैं श्री ब्र० जिनेन्‍द्रजी रचित शान्तिपथ-प्रदर्शन ग्रन्‍थका अध्‍ययन करके यह प्रमाणित करता हूँ कि‍ वास्‍वतमें यह ग्रन्‍थ अपने नामके अनुसार ही पाठकोंको शान्तिपथ-प्रदर्शन करने में यथायोग्‍य सम्‍पूर्णतया समर्थ है । यद्यपि इस ग्रन्‍थका अध्‍ययन मैंने अभी संक्षेपमें ही किया है किन्‍तु अल्‍पकालके थोड़ेसे अध्‍ययन मात्रसे ही मैंने यह निष्‍कर्ष निकाला है कि लेखकने किसी मत-मतान्‍तर का पक्ष न लेते हुये वैज्ञानिक ढंग से सरल हिन्‍दी भाषा में जो अपने अनुभवपूर्ण भाव प्रकट किये है वे नि:संदेह प्रशंसनीय हैं । अत: मैं शान्तिकी इच्‍छुक श्रद्धालु जनताको प्रेरणा करता हूँ कि एक बार इस ग्रन्‍थका अध्‍ययन अवश्‍यमेव करें ।

    २६. श्री जय भगवान् जैन ऐडवोकेट-

          शान्तिपथ-प्रदर्शनमें संकलित प्रवचनोंके प्रवक्‍ताका जहाँ यह अभिप्राय व्‍यक्‍त है कि वे लोक कल्‍याणार्थ सभीको शान्तिपथ-प्रदर्शन करा सकें उनका यह भी अभिप्राय रहा है कि तदर्थ प्रयुक्‍त होने वाली भाषा ऐसी सरल व सुबोध हो कि वह शिक्षित तथा अशिक्षित सभीके समझमें आ सके । कोई जमाना था कि तत्‍वज्ञों की अनुभूत व अनुसन्‍धानित तथ्‍योंको समझनेके लिए उनके द्वारा आविष्‍कृत गूढ़ विशिष्‍ट परिभाषाओंको जान लेना आवश्‍यक हेाता था, जिसका परिणाम यह हुआ कि तात्विक विद्यायें कुछ इने-गिने विद्वानोंकी ही सम्‍पत्ति बन-कर रह गईं और जन-साधारण उनके रसास्‍वादनसे वंचित रह गया, जो कभी भी तत्‍वज्ञोंकोअभिप्रेत न था । भाषा अन्‍तत: भाव-अभिव्‍यंजनका एक माध्‍यम मात्र है, इसीसे उसका महत्‍व व उपयोगिता बनी है, जैसा कि समयसार गाथा में भगवन् कुन्‍दकुन्‍द ने कहा है- ‘न शक्‍योअनार्ध्‍योअनारर्य्य भाषां बिना तू ग्राहयितुम्’ । अनार्य जन आर्यभाषाको नहीं समझते अत: प्रवक्‍ताका कर्तव्‍य है कि जिस देश और युगकी जनताको सन्‍देश देना अभीष्‍ट हो उन्‍हींकी भाषा और मुहावरोंको अपनावे । इन प्रवचनोंके प्रवक्‍ताने इस दिशामें जो कदम उठाया है वह अत्‍यन्‍त सराहनीय और अभिनन्‍दनीय है । इस ग्रन्‍थके प्रकाशनके आरम्‍भसे ही जो लोकप्रियता मिली है उसके लिए नि:संदेह इसके प्रवक्‍ता महान् श्रेयके पात्र हैं । 


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