१. कार्य की प्रयोजकता; २. अध्ययन के विघ्न; ३. वक्ता की प्रमाणिकता; ४. विवेचन के दोष; ५. श्रोता के दोष; ६. महाविघ्न पक्षपात; ७. वैज्ञानिक बन; ८. पक्षपात निरसन ।
चिदानन्दैक रूपाय शिवाय परमात्मने ।
परमलोकप्रकाशाय नित्यं शुद्धात्मने नम: ।।
‘‘नित्य शुद्ध उस परमात्म तत्व को नमस्कार हो, जो परम लोक का प्रकाशक है, कल्याण स्वरूप है और एक मात्र चिदानन्द ही जिसका लक्षण है ।’’
स्वदोष-शान्त्या विहिताऽऽत्मशान्ति:,
शान्तेर्विधाता शरणं गतानाम् ।
भूयाद्भव-क्लेश-भयोपशान्त्यं:,
शान्तिर्जिनो मे भगवान् शरण्य: ।।
जिन्होंने अपने दोषों को अर्थात् अज्ञान तथा काम क्रोधादि को शांत करके अपनी आत्मा में शांति स्थापित की है, और जो शरणागतों के लिये शांति के विधाता हैं वे शांतिनाथ भगवान् मेरे लिये शरणभूत हों ।
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